Please read the English and Hindi report on the seminar.
The seminar, organised on May 27, 2022, was based on Pandit Motilal Shastri’s Gitavijnana-bhashya’s chapter on rajarshividya. The meeting was presided by Prof. Santosh Kumar Shukla, Professor, Sanskrit and Indic Studies, Jawaharlal Nehru University and Convener, Shri Shankar Shikshayatan. Read the full report
श्रीशंकर शिक्षायतन (वैदिक शोध संस्थान), नई दिल्ली एवं संस्कृत, पालि एवं प्राकृत विभाग, हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला के संयुक्त तत्त्वावधान में दिनांक २७ मई २०२२ को सायं ४-७ बजे तक गीताविज्ञानभाष्य-ज्ञानयोगविमर्श विषयक अन्तर्जालीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समायोजन किया गया। यह संगोष्ठी पं. मोतीलाल शास्त्री प्रणीत गीताविज्ञानभाष्य के अन्तर्गत प्रतिपादित राजर्षिविद्या के प्रथम उपनिषद् को आधार बनाकर समायोजित की गयी थी। ध्यातव्य है कि गीताविज्ञानभाष्य के अन्तर्गत चार विद्याओं का वर्णन प्राप्त होता है-राजर्षिविद्या, सिद्धविद्या, आर्षविद्या एवं राजविद्या। राजर्षिविद्या के अन्तर्गत सात उपनिषदों में निहित कुल ५० उपदेशों को समाहित किया गया है। राजर्षिविद्या के प्रथम उपनिषद् के अन्तर्गत गीता के द्वितीय अध्याय के ११वें श्लोक से लेकर ३७ वें श्लोक पर्यन्त सात उपदेशों में विभक्त कर उनका विवेचन किया गया है। इन्हीं सात उपदेशों को केन्द्र में रखकर इस संगोष्ठी के वक्ताओं ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया।
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