पं. मोतीलाल शास्त्री स्मारक व्याख्यान एवं ऋषिसम्मान समारोह
प्रतिवेदन
श्रीशंकर शिक्षायतन, नई दिल्ली द्वारा दिनांक २८ सितम्बर २०२२ को श्रीलाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विश्वविद्यालय के वाचस्पति सभागार में सायंकाल ३-५ बजे तक पं. मोतीलाल शास्त्री स्मारक व्याख्यान एवं ऋषिसम्मान समारोह का आयोजन किया गया।
श्रीशंकर शिक्षायतन द्वारा विगत १५ वर्षों से वैदिक विज्ञान के प्रख्यात मनीषी वेदवाचस्पति पं. मोतीलाल शास्त्री की स्मृति में प्रत्येक वर्ष के २८ सितम्बर को इस स्मारक व्याख्यान का समायोजन किया जाता है, जिसमें पं. मधुसूदन ओझाजी, पं. मोतीलालशास्त्रीजी एवं पं. ऋषि कुमार मिश्रजी के किसी ग्रन्थविशेष को आधार बनाकर देश के किसी ख्यातिलब्ध आचार्य के द्वारा व्याख्यान दिया जाता है। इस क्रम में इस वर्ष का यह स्मारक व्याख्यान श्री ऋषि कुमार मिश्र प्रणीत द अल्टीमेट डायलॉग नामक ग्रन्थ पर समायोजित था जो संस्कृत एवं प्राच्यविद्या के प्रख्यात आचार्य एवं प्रसिद्ध भाषाविद् प्रो. कपूल कपूर द्वारा दिया गया। श्रीलाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुरली मनोहर पाठक की अध्यक्षता में स्मारक व्याख्यान एवं ऋषिसम्मान समारोह का यह सफल कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इस कार्यक्रम में दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. ओमनाथ विमली ने विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित होकर अपने उद्बोधन द्वारा श्रोताओं को सम्बोधित किया।
\इस अवसर पर संस्कृतविद्या एवं भारतीय ज्ञानपरम्परा के अध्ययन, अध्यापन, अनुसन्धान तथा संरक्षण-संवर्धन में महनीय योगदान के लिए श्री शंकर शिक्षायतन द्वारा प्रो. कपिल कपूर को वर्ष २०२२ के ऋषिसम्मान से सम्मानित भी किया गया।
द अल्टीमेट डायलॉग नामक ग्रन्थ के प्रणेता श्री ऋषिकुमार मिश्रजी हैं जो एक प्रख्यात शिक्षाविद् और प्रसिद्ध राजनेता थे। उन्होंने अत्यन्त परिश्रम से निष्ठापूर्वक अपने गुरु पण्डित मोतीलाल शास्त्री द्वारा अधीत वेदविज्ञान के प्रचार-प्रसार हेतु अंग्रेजी भाषा में जिन पाँच ग्रन्थों का प्रणयन किया है, उनमें द अल्टीमेट डायलॉग नामक ग्रन्थ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। श्रीमद्भगवद्गीता पर आधृत यह ग्रन्थ कुल अधोलिखित आठ विभागों में विभक्त है। इस ग्रन्थ का विषयवस्तु संक्षेप में प्रस्तुत है-
पहले विभाग का नाम बिगनिंग द डायलॉग है। जिसमें शास्त्र को जानने के लिए गुरु का महत्त्व, ग्रन्थ की विस्तृत प्रस्तावना और वैदिक विज्ञान संबन्धी विषयों का प्रतिपादन सरलतापूर्वक किया गया है। कृष्ण : द मैन, द मेटाफर् एण्ड द फेनोमिनाँ नामक दूसरे अध्याय में कृष्ण के वैश्विकस्वरूप, राधा-कृष्ण के कालरहित प्रेम एवं अर्जुन के अनेक संदेशपूर्ण जीवनवृत्त का वर्णन है।
लॉज् ऑफ नेचर नामक तृतीय विभाग में प्रकृति की विविधता तथा धर्म के वास्तविक स्वरूप का वर्णन है। नॉलेज नामक चौथा विभाग पाश्चात्य विद्वानों के ज्ञानविषयक विचार, दर्शन में ज्ञान, श्रीमद्भगवद्गीता में योग और गीता में ईश्वर का स्वरूप आदि विषयों को उद्घाटित करता है।
पाँचवें विभाग का नाम इण्टेलीजेन्स है। इस विभाग में चेतना का स्वरूप, चेतना एवं दिक्, चेतना के तीन स्तर, बुद्धि की परिभाषा, अपने मानसिक आवेग का निर्धारण, मन से तत्त्वबोध का अभ्यास तथा रूपक के माध्यम से सारथी के रूप में श्रीकृष्ण के वर्णन को प्रदर्शित किया गया है। एक्शन नामक छठे विभाग में कर्म और उसके फल का वर्णन, निष्काम कर्म से मुक्ति, निष्काम कर्म का महत्त्व एवं उसके प्रयोग को रेखांकित किया गया है। उपसंहारात्मक सातवें विभाग में इस ग्रन्थ का निष्कर्ष प्रस्तुत किया गया है। जिसमें संवाद के प्रकार, किसी से सम्पर्क स्थापित करने के लिए संवाद का चयन, स्वयं के साथ संवाद, गुरु-शिष्य संवाद आदि विषयों का निदर्शन है।आठवें विभाग में परिशिष्ट है। जिसमें आदिशङ्कराचार्य, वैदिक आर्य एवं मानव-सभ्यता का वर्णन, पारिभाषिक शब्द, सन्दर्भ-ग्रन्थ-सूची आदि समाहित हैं।
मुख्य वक्ता के रूप में इस वर्ष का स्मारक व्याख्यान देते हुए प्रो. कपिल कपूर ने द अल्टीमेट डायलॉग नामक ग्रन्थ के विषयवस्तु को अत्यन्त सरल एवं सहज शब्दों में स्पष्ट किया। उन्होंने अपने वक्तव्य के प्रारम्भ में श्रीऋषि कुमार मिश्रजी के महनीय व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए संस्कृतविद्या एवं वेदविद्या के प्रति उनके समर्पण को रेखांकित कर उन्होंने कहा कि मिश्रजी ने अपने पाँच ग्रन्थलेखन के माध्यम से अपने गुरु के प्रति अनन्य श्रद्धा एवं निष्ठा का अनुकरणीय प्रतिमान स्थापित किया है।
प्रो. कपूर ने कहा कि यह अल्टीमेट डायलॉग नामक ग्रन्थ वस्तुतः मिश्रजी का अपनी गुरु के प्रति अल्टीमेट श्रद्धाञ्जलि है। इस ग्रन्थ में मिश्रजी ज्ञान-कर्म के परस्पर संघर्ष का उल्लेख करते हुए श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन के प्रति किये गये उपदेश का कथ्य बतलाने का प्रयत्न किया है। यदि ज्ञान एवं कर्म में से किसी एक का चयन करना पड़े तो कर्म का चयन श्रेयस्कर है। क्योंकि ज्ञान भी कर्म पर निर्भर है, इसलिए कर्ममार्ग को श्रेष्ठ भी माना गया है। परन्तु इन सबका बोध बुद्धि के द्वारा होता है। वस्तुतः चेतना में ज्ञान, कर्म एवं बुद्धि इन तीनों का परस्पर संघर्ष भी होता है एवं उसी में इन तीनों का विलय भी हो जाता है। ज्ञान, कर्म एवं बुद्धि जब ये तीनों मिल जाते हैं तब एक नवीन चेतना का उदय होता है जो प्रातिभासिक भेद का निराकरण कर तात्त्विक एकता का बोध कराती है। जबतक हमारे भीतर भेदबुद्ध रहती है तबतक हम सांसारिक वस्तुओं को अलग-अलग देखते हैं लेकिन जब हमारे अन्दर चेतना का उदय हो जाता है तब सांसारिक वस्तुओं के मध्य रहने वाले सम्बन्ध का बोध हो जाता है और वह सम्बन्ध है- संसार के प्रत्येक कण में ब्रह्मभाव का होना। इस प्रकार मिश्रजी का यह अल्टीमेट डायलॉग नामक ग्रन्थ हमें भेद से अभेद की ओर ले जाने वाला ग्रन्थ है।
मुख्य वक्तव्य के अनन्तर प्रो. कपिल कपूर को वर्ष २०२२ के ऋषिसम्मान से सम्मानित किया गया। श्रीशंकर शिक्षायतन की प्रबन्धन्यासी श्रीमती रेणुका मिश्रा एवं मंचस्थ अतिथियों ने आदरणीय प्रो. कपिल कपूर को शॉल, नारिकेल, ऋतुफल, ऋषिसम्मानपत्र, अभिनन्दन पत्र आदि से सम्मानित किया। अभिनन्दनपत्र का वाचन श्रीशंकर शिक्षायतन के वरिष्ठ अध्येता डॉ. मणि शंकर द्विवेदी ने किया।
विशिष्ट अतिथि के रूप में अपने उद्बोधन में प्रो. ओमनाथ विमली ने द अल्टीमेट डायलॉग ग्रन्थ के अल्टीमेट डायलॉग शब्द पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय वाङ्मय में परा-अपरा नामक दो विद्याएँ प्रचलित हैं जो क्रमशः आत्मविद्या एवं अनात्मविद्या, दर्शन एवं विज्ञान आदि अभिधानों से भी अभिहित की जाती हैं। इन दोनों ही विद्याओं के अध्ययन में संवाद की आवश्यकता होती है। परन्तु जहाँ अपरा विद्या संवाद के साथ ही संवादेतर माध्यमों से भी गम्य है वही आत्मविद्या संवादमात्र के द्वारा ही जानी जा सकती है। यह संवाद गुरु का शिष्य के साथ होता है। इसलिए आत्मविद्या के ज्ञान के लिए जिस संवाद की आवश्यकता होती है, वह परम संवाद होता है। वह संवाद अन्य संवादों से भिन्न होने के कारण ही परमसंवाद अर्थात् अल्टीमेट डायलॉग कहलाता है। दूसरे अर्थ में चूँकि अल्टीमेट डायलॉग अल्टीमेट रियालिटी के लिए होता है, इसलिए भी वह अल्टीमेट डायलॉग कहलाता है। एक अन्य अर्थ में वह डायलॉग जिसके बाद कोई अन्य डायलॉग शेष नहीं रह जाता है, अल्टीमेट डायलॉग कहलाता है। जैसे- तत्त्वमसि आदि वैदिक महावाक्य। अल्टीमेट डायलॉग के माध्यम से ही गुरु शिष्य को परमतत्त्व तक पहुँचाता है जहाँ शिष्य सभी प्रकार के द्वैत से मुक्त होकर अखण्ड एकत्व में समाहित हो जाता है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. मुरली मनोहर पाठक ने कार्यक्रम की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा करते हुए भारतीय ऋषिपरम्परा के महत्त्व को उद्घाटित कर प्रो. कपिल कपूर को ऋषिसम्मान से सम्मानित करने के लिए श्रीशंकर शिक्षायतन को साधुवाद दिया। उन्होंने प्रो. कपिल कपूर को भारतीय ऋषिपरम्परा के वाहक आचार्य के रूप में उनके महनीय योगदान को रेखाङ्कित करते हुए कहा कि प्रो. कपूर का भारतीय ज्ञानपरम्परा में महनीय अवदान ऋषिसम्मान को शब्दतः एवं अर्थतः चरितार्थ कर रहा है। उन्होंने बतलाया कि संवाद के माध्यम से हमारी दुविधा समाप्त होती है। भारतीय गुरु-शिष्य परम्परा के अद्वितीय निदर्शक श्रीकृष्ण-अर्जुन हैं जिनके मध्य संवाद के माध्यम से ही अर्जुन की सारी दुविधाएँ समाप्त हुई थी, जिसके बाद अर्जुन ने कहा था नष्टो मोहः अर्थात् मेरे सारे मोह नष्ट हो गये। स्मृतिर्लब्धा अर्थात् मुझे जो स्मृतिप्रमोष हो गया था, मेरी स्मृति नष्ट हो गयी थी, वह आपकी कृपा से आपके इस संवाद द्वारा पुनः प्राप्त हो गयी। फलस्वरूप मैं स्वयं में स्थित हो गया हूँ। अब मुझे अपने करणीय कार्य के प्रति कोई शङ्का शेष नहीं है। इस प्रकार प्रो. पाठक ने अनेक उदाहरणों द्वारा संवाद पर प्रकाश डालते हुए यह उद्घाटित किया कि अल्टीमेट डायलॉग हमें अल्टीमेट रियालिटी अर्थात् चिरन्तन सत्य तक की यात्रा कराता है।
कार्यक्रम का शुभारम्भ अतिथियों द्वारा दीपप्रज्वालन से हुआ। दीपप्रज्वालन के पश्चात् श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के वेद विभाग के आचार्य प्रो. रामानुज उपाध्याय ने वैदिक मङ्गलाचरण तथा न्यायविभागाध्यक्ष प्रो.महानन्द झा ने लौकिक मङ्गलाचरण प्रस्तुत किया। इसी विश्वविद्यालय के वेदविभागीय आचार्य डॉ. सुन्दरनारायण झा द्वारा प्रस्तुत शान्तिपाठ से कार्यक्रम का समापन हुआ।
कार्यक्रम का सफल संचालन श्री शंकर शिक्षायतन के समन्वयक तथा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के संस्कृत एवं प्राच्यविद्या अध्ययन संस्थान के आचार्य प्रो. सन्तोष कुमार शुक्ल ने किया। इस महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम में जे.एन.यू., दिल्ली विश्वविद्यालय एवं उसके अङ्गीभूत विविध महाविद्यालयों, जामिआ मिलिआ इस्लामिआ, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के साथ ही दिल्ली स्थित अन्य अनेक शैक्षणिक संस्थानों के प्राध्यापकों एवं शोधार्थियों ने अपनी सक्रिय सहभागिता से इस कार्यक्रम को सफल बनाया।