
Gitavijnana Bhashya Rahasya Series
Pandit Madhusudan Ojha has collected his commentaries on Bhagavad Gita as Gitavijnana Bhashya. These books are under four classifications – Rahasyakhand, Shirshakhand, Hridyakhand and Acharakhand. Hridyakhand has not been published. Pandit Motilal Shastri has written a series of six books on these subjects in Hindi –Atmadarshan Rahasya, Brahmakarma Rahasya, Karmayoga Rahasya, Jnanayoga Rahasya,Upasana Rahasya and Budhiyoga Rahasya. पण्डित मधुसूदन ओझा ने गीताविज्ञानभाष्य का प्रणयन किया है। इसमें चार काण्ड हैं- रहस्यकाण्ड, शीर्षकाण्ड, हृदयकाण्ड और आचारकाण्ड। हृदयकाण्ड अभी प्रकाशित नहीं है। रहस्यकाण्ड के पृष्ठ संख्या १७४ पर विषयरहस्य समाहित है। पण्डित मोतीलाल सास्त्री ने इन विषयों को आधार बना कर ६ ग्रन्थों की शृंखला हिन्दी भाषा माध्यम से लिखी है। जो इस प्रकार है- आत्मदर्शनरहस्य, ब्रह्मकर्मरहस्य, कर्मयोगरहस्य, ज्ञानयोगरहस्य, उपासनारहस्य और बुद्धियोगरहस्य। आत्मदर्शनरहस्य गीता मायावच्छिन्न अव्यय तत्त्व का प्रतिपादन करती है। (आत्मदर्शनरहस्य पृ. ३) वैशेषिकदर्शन, सांख्यदर्शन और वेदान्तदर्शन इन तीनों दर्शनों के विचार का विषय आत्मा है, इस दृष्टि से ये तीनों दर्शन एक हैं। इन तीनों दर्शनों का आत्मप्रतिपादन की शैली भिन्न भिन्न होने से ये तीनों पृथक् है। (आत्मदर्शनरहस्य पृ. ९) एक एव इदं दर्शनशास्त्रं त्रेधा विभज्योपदिश्यते। वैशेषिकशास्त्रम् अन्यत्, प्राधानिकं शास्त्रम् अन्यत्, शारीरकशास्त्रम् अन्यत्। ( गीताविज्ञानभाष्य रहस्यकाण्ड पृ.१७६) इस संसार में आत्मा शब्द तीन तत्त्वों के माध्यम से ज्ञात होता है। ये हैं- अव्यय, अक्षर और क्षर। (आत्मदर्शनरहस्य पृ. ११) क्षर- संसार के सभी प्रकार के विकारों का उपादानकारण और हमेशा विकृत होने वाला जो एक अव्यक्त पुरुष है वही क्षर कहलाता है। मिट्टी उपादान कारण है और घड़ा आदि विकार है। इसका दूसरा नाम आत्मक्षर है। (वही, पृ.११) मृत्तिकावद् विकारोपादानभूतः परिणामी कश्चिदव्यक्तः क्षरपुरुषः- इत्येकः। (गीताविज्ञानभाष्य रहस्यकाण्ड पृ.१७८) अक्षर-कुम्भकार के समान जगत् को बनाने वाला अन्तर्यामी, नियन्ता, निर्विकार, और अपरिणामी जो एक अव्यक्ततत्त्व है वही अक्षर पुरुष कहलाता है।(वही, पृ.१२) कुम्भकारवन्निर्माता सर्वशक्तिघनोऽन्तर्यामी नियन्ता निर्विकारोऽपरिणामी कश्चिदव्यक्तोऽक्षरपुरुषो द्वितीयः। (गीताविज्ञानभाष्य रहस्यकाण्ड पृ.१७८) अव्यय- कार्य और कारण से अतीत और असंग जो एक अव्यक्त तत्त्व है वही अव्ययपुरुष कहलाता है। (वही, पृ.१२) कार्यकारणातीतोऽसङ्गः आलम्बनभूतः सर्वाधारो निराधारः कश्चिदव्यक्तोऽव्ययपुरुषस्तृतीयः। (गीताविज्ञानभाष्य रहस्यकाण्ड पृ.१७९) इस लघुकाय ग्रन्थ में ७२ पृष्ठ हैं एवं वैशेषिक दर्शन, सांख्य दर्शन और वैदिक विज्ञान का विस्तार से प्रस्तुति की गयी है। Read/Download Atmadarshan Rahasya ब्रह्मकर्मरहस्य पण्डित मधुसूदन ओझा विरचित गीताविज्ञानभाष्य के रहस्य काण्ड की पृष्ठसंख्या २०६ पर ब्रह्मकर्म की समीक्षा है। पण्डित मोतीलाल शास्त्री ने ब्रह्मकर्मरहस्य नामक लघु ग्रन्थ का प्रणयन किया है। जिसमें ६२ पृष्ठ हैं। इस ग्रन्थ में पाँच सिद्धान्तों का विश्लेषण किया गया है- त्रिसत्यवाद- जिस सिद्धान्त में तीन तत्त्व सत्य हैं, वह त्रिसत्यवाद है। प्रवृत्ति और निवृत्ति ये दो शब्द हैं। प्रवृत्ति का अर्थ है कर्म में लगना। जैसे नौकरी करना, पैसा कमाना, गाड़ी खरीदना ये सभी कार्य प्रवृत्ति कहलाते हैं। जो इस प्रकार के कर्म में नहीं लगता है वह निवृत्ति मार्ग है। निवृत्ति कर्म ज्ञानयोग है, प्रवृत्ति कर्म कर्मयोग है और प्रवृत्ति-निवृत्ति ही बुद्धियोग है। इस प्रकार कर्मयोग, ज्ञानयोग और बुद्धियोग ये तीनों त्रिसत्यवाद है। (ब्रह्मकर्मरहस्य पृ. ४) ब्रह्म के तीन रूप हैं- अव्यय, अक्षर और क्षर। कर्म के तीन रूप हैं- ज्ञान, कर्म और बुद्धि। ये तीन विभाग हो जाते हैं। पुनः ब्रह्म और कर्म में संबन्ध बनाने वाला तत्त्व अभ्व है।(ब्रह्मकर्मरहस्य पृ. ६) इस ग्रन्थ में त्रिसत्यवाद का वर्णन पृष्ठ संख्या १ से ११ तक किया गया है। पं ओझा जी ने लिखा है कि कतिपय विद्वान् के अनुसार ब्रह्म, कर्म और अभ्व ये तीन तत्त्व हैं, ब्रह्म ज्ञान है, कर्म क्रिया है, जो दिखाई देता है, किन्तु तर्क से सिद्ध नहीं होता, वह अभ्व है। ये नाम-रूप ही अभ्व हैं, यह मत है। ब्रह्म, कर्म, अभ्वमिति त्रीणि तत्त्वानि। ब्रह्म ज्ञानम्, कर्म क्रिया, अथ यद् दृश्यते, किन्तु नोपपद्यते तदभ्वम्, नामरूपे हीमे अभ्वमित्येकं मतं भवति। (गीताविज्ञानभाष्य, रहस्यकाण्ड, पृ २०७) द्विसत्यवाद- ब्रह्म और कर्म ये दो ही तत्त्व इस में माने जाते हैं। तीसरा अभ्व की आवश्यकता नहीं है। कर्म में ही अभ्व का समाहित है। मायामय कर्म दोनों एक ही वस्तु है। (ब्रह्मकर्मरहस्य पृ. ११) कर्म का अर्थ क्रिया है। क्रिया की तीन अवस्था होती है। प्रवृत्ति, निवृत्ति और स्तम्भ। घर में प्रवेश करना प्रवृत्ति है और घर से बाहर निकलना निवृत्ति है। इन दोनों क्रियाओं का योग स्तम्भन कहलाता है। (ब्रह्मकर्मरहस्य पृ. ११) इस ग्रन्थ में ब्रह्म और कर्म का वर्णन पृष्ठ संख्या ११ से १३ तक हुआ है। पं. ओझा जी लिखते हैं कि ब्रह्म और कर्म ये दो तत्त्व हैं, अभ्व नामक कोई तीसरा तत्त्व नहीं है। मायामय अभ्व का कर्म में अन्तर्भाव हो जाता है। ब्रह्मकर्मणी द्वे एव तत्त्वे नाभ्वम्, मायामयस्यैतस्याभ्वस्य कर्मण्येवान्तर्भावात्। (गीताविज्ञानभाष्य, रहस्यकाण्ड, पृ २०७) असद्वाद- इस सिद्धान्त के अनुसार कर्म ही प्रधान है। ब्रह्म तत्त्व की आवश्यकता नहीं है। कर्म को बल कहा गया है। बल ही श्रम अर्थात् परिश्रम का आधार है। श्रम को स्वीकार करने वाले को श्रमणक कहा गया है। ‘कर्मैवेदं सर्वम्’ है। संपूर्ण जगत् का मूल असत् तत्त्व कर्म ही है।(ब्रह्मकर्मरहस्य पृ. १३-१४) इस ग्रन्थ में असद्वाद का वर्णन पृष्ठ संख्या १३ से २३ तक है। पं. ओझा जी लिखते हैं कि इन ब्रह्म और कर्म में केवल कर्म ही एक तत्त्व है, इसको श्रमण लोग मान्ते हैं। यह संपूर्ण जगत् कर्म के रूप में ही दिखता है। ब्रह्म नामक कोई अतिरिक्त पदार्थ नहीं है। अथैतयोरपि ब्रह्मकर्मणोः कर्मैव तत्त्वमिति श्रमणा आतिष्ठन्ते। तथा हि कर्मैवेदं सर्वं पश्यामि। न ब्रह्म नामातिरिच्यते कश्चिदर्थः।(गीताविज्ञानभाष्य, रहस्यकाण्ड, पृ २०७) सदसद्वाद- जो प्रतिक्षण बदलता है वह कर्म है। जो कभी नहीं बदलता है, वह ब्रह्म है। इस जगत् में इन दोनों भावों का साम्राज्य है। इस आधार पर इन दोनों तत्त्वों को स्वीकार करना आवश्यक है। ये दोनों तत्त्व सत् और असत् नाम से भी जाने जाते हैं। इन दोनों का संबन्ध नित्य है।(ब्रह्मकर्मरहस्य पृ. ३०) असन्नेव स भवति असद्ब्रह्मेति वेद चेत् । अस्ति ब्रह्मेति चेद्वेद सन्तमेनं ततो विदुः॥ तैत्तिरीयोपनिषद् २..६.१सद्वाद- ज्ञान का ही नाम ब्रह्म है। कर्म की उत्पत्ति ब्रह्म से होती है, ब्रह्म में ही कर्म आश्रित रहता है और ब्रह्म में ही कर्म का प्रलय भी होता अहि। इस दृष्टि से ब्रह्म ही सत् है। (ब्रह्मकर्मरहस्य पृ. ६१) Read/Download Brahmakarma Rahasya कर्मयोगरहस्य पण्डित मधुसूदन ओझा के गीताविज्ञानभाष्य- रहस्यकाण्ड में पृष्ठ संख्या२२० पर कर्मयोगसमीक्षा है। पण्डित मोतीलाल शास्त्री ने इसी को आधार बना कर १४२ पृष्ठ वाली कर्मयोगरहस्य नामक किताब लिखी है। रहस्य ग्रन्थ शृंखला में यह ग्रन्थ तीसरे स्थान…