January 31, 2024
विद्यावाचस्पति पण्डित मधुसूदन ओझा ने वैदिक विज्ञान को उद्घाटित करने के लिए अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है। उनके द्वारा प्रणीत ग्रन्थों में ‘इन्द्रविजय’ नामक ग्रन्थ का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस ग्रन्थ में पं. ओझाजी ने विविध वैदिक एवं पौराणिक उद्धरणों को प्रस्तुत करते हुए भारतवर्ष के ऐतिहासिक एवं भौगोलिक स्वरूप का प्रामाणिक विवेचन प्रस्तुत किया है। यह ग्रन्थ कुल चार प्रक्रमों में विभक्त है जिनमें त्रिविध त्रिलोकी, भारतवर्ष के नामकरण के हेतु, हिन्दुस्तान शब्द का भारत के एक भाग के लिए प्रयोग, सिन्धु नद को विभाजक मानकर बृहत्तर भारत के पूर्वी और पश्चिमी दो भेदों की स्थापना द्वारा सीमानिर्धारण, संहितामन्त्रों के निर्माणकाल में लिपि होने की स्थापना, धर्म-स्वरूप, विद्याओं के प्रभेद, आर्यों की मौलिक भारतीयता की स्थापना और वैदेशिकता का खण्डन, भारतीय राष्ट्र पर वैदेशिक अनार्य दासों के आक्रमण, देवेन्द्र द्वारा दस्युओं का निग्रहण आदि अनेक विषयों का प्रबलतम प्रमाणों और तर्कों के द्वारा उनका विवेचन कर अनेक रहस्योद्घाटक तथ्य ओझाजी के द्वारा प्रस्तुत किये गये हैं।
श्रीशंकर शिक्षायतन वर्ष 2024 के अपने ऑनलाईन मासिक संगोष्ठी कार्यक्रम के अन्तर्गत ओझाजी के ‘इन्द्रविजय’ नामक ग्रन्थ को आधार बनाकर इस वर्ष इन्द्रविजय : भारतवर्ष आख्यान-विमर्श नामक एक विशिष्ट शृंखला का शुभारम्भ करने जा रहा है। जिसके अन्तर्गत प्रत्येक महीने एक ऑनलाईन संगोष्ठी समायोजित की जायेगी जिसमें इस ग्रन्थ के प्रत्येक विषय पर इस विषय के विशेषज्ञ विद्वानों द्वारा विस्तृत विचार-विमर्श किया जायेगा।
प्रस्तुत संगोष्ठी इस विमर्शशृंखला के अन्तर्गत समायोजित होने वाली प्रथम संगोष्ठी है जो इन्द्रविजय के भारतपरिचय नामक प्रथम प्रक्रम के कुछ बिन्दुओं को आधार बनाकर समायोजित की जा रही है। भारतपरिचय नामक प्रक्रम कुल ११ शीर्षकों में विभक्त है। ये शीर्षक हैं- त्रैलोक्यप्रसङ्ग, नामधेयप्रसङ्ग, सीमाप्रसङ्ग, उपद्वीपप्रसङ्ग, लङ्काप्रसङ्ग, भारतीयभाषाप्रसङ्ग, वर्णमातृकाप्रसङ्ग, लिपिप्रसङ्ग, सभ्यताप्रसङ्ग, धर्मप्रसङ्ग एवं विद्याप्रसङ्ग।