प्रतिवेदन
श्रीशंकर शिक्षायतन वैदिक शोध संस्थान, नई दिल्ली एवं ज्ञानप्रवाह सास्कृतिक अध्ययन केन्द्र, वाराणसी के संयुक्त तत्त्वावधान में दिनांक १७ नवम्बर २०२४, रविवार को ज्ञानप्रवाह के सभागार में ‘पण्डित मधुसूदन ओझा का व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी समायोजित की गयी ।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रो. हृदय रञ्जन शर्मा, उपाध्यक्ष, म. सा. राष्ट्रीय वेद विद्याप्रतिष्ठान, उज्जैन ने की। उन्होंने कहा कि वैदिकविज्ञान में इतिहास को वैदिकसन्दर्भ के आलोक में उपस्थापित किया गया है। मुख्य अतुथि के रूप में प्रो. बाल शास्त्री, पूर्व संकाय प्रमुख, संस्कृतविद्या धर्मविज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने कहा कि जिस समय भारतीय विद्वान् समुद्रयात्रा नहीं करते थे। उस समय पण्डित ओझा जी ने महाराजा माधव सिंह के साथ इंग्लैण्ड गये और शास्त्रप्रमाण से विदेशयात्रा की प्रासंगिकता को सिद्ध किया । स्वागत वक्त प्रदान करते हुए प्रो. युगल किशोर मिश्र, पूर्व कुलपति, ज. रा. राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय ने कहा कि पण्डित मधुसूदन ओझा का अध्ययन स्थान काशी ही था। जहाँ काशी के मूर्धन्य विद्वान् महामहोपाध्याय शिवकुमारशास्त्री जी ओझा जी के गुरु थे। विषय प्रवर्तन के क्रम में प्रो. सन्तोष कुमार शुक्ल, आचार्य, संस्कृत एवं प्राच्यविद्या अध्ययन संस्थान, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली ने विस्तार से पण्डित ओझा जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर अपना विचार रखा। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में दो शैक्षणिक सत्र में लगभग २० विद्वानों ने शोधपत्र को प्रस्तुत किया।
सायंकाल ऋषिसम्मान समारोह का समायोजन किया गया । जिस में महामहोपाध्याय आचार्य वशिष्ठ त्रिपाठी, प्रख्यात नैयायिक एवं पद्द्मभूषण सम्मान से सम्मानित आचार्य को श्रीशंकर शिक्षायतन ने ऋषि सम्मान से संम्मानित किया। प्रो. रामचन्द्र पाण्डेय, पूर्व संकाय प्रमुख, संस्कृतविद्या धर्मविज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी को भी ऋषिसम्मान से सम्मानित किया गया। अंगवस्त्र, फल, अभिनन्दनपत्र, प्रमाणपत्र आदि से दोनों विद्वानों को यथोचित सम्मानित किया गया।
इस कार्यकार्यक्रम में वाराणसी के अनेक शोधछात्र और महनीय आचार्य वृन्द एवं श्रीलाल बहादुर सास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय वैदिक विद्वानों ने उत्साह पूर्वक भागग्रहण कर कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना अप्रतिम योगदान किया।