Vyakaranvinod is a simplified text on Sanskrit grammar written by Pandit Madhusudan Ojha. In six chapters, Ojhaji has explained the intricacies of language and grammar in a comprehensive manner. Ojhaji had kept students of Sanskrit in mind while writing this book.
व्याकरणविनोदः
पण्डित मधुसूदन ओझा के वेदाङ्गसमीक्षा खण्ड में वाक्पदिका नामक विभाग में ‘व्याकरणविनोद’ ग्रन्थ का स्थान है। व्याकरण भाषा में प्रयोग होने वाले शब्दों को सिद्ध करने का कार्य करता है। विनोद पद का अर्थ अनायास या सहज है। जो ग्रन्थ भाषासम्बन्धी विषय को सरलता से पाठक को समझा दे उस ग्रन्थ को व्याकरणविनोद कहते हैं। इस ग्रन्थ में छह प्रकरण हैं- १. समासपरिच्छेद २. तद्धितपरिच्छेद ३. नामधातुपरिच्छेद ४. प्रक्रियापरिच्छेद ५. कृदन्तपरिच्छेद और ६. अव्ययपरिच्छेद ।समासपरिच्छेद में समास को बताया गया है। समास दो या इससे अधिक शब्दों को जोड़ने को समास कहते हैं। समास के ये भेद हैं-द्विरुक्तसमास, द्वन्द्वसमास, अव्ययीभावसमास, तत्पुरुषसमास, बहुव्रीहि हैं।
जो प्रत्यय शब्द से होते हैं उसे तद्धित प्रत्यय कहते हैं। जैसे- समाज शब्द से सामाजिक, सुन्दर शब्द से सुन्दरता, शिक्षा शब्द से शैक्षिक आदि अनेक शब्द बनते हैं।नाम अर्थात् संज्ञाशब्द से धातु बनाने की प्रक्रिया का नामधातु है । जैसे कारित का अर्थ प्रेरणा है। णिच् प्रत्यय से यह शब्द बनता है। जैसे राम पढ़ता है, शिक्षक के द्वारा राम पढ़ाया जाता है। राम जाता है । मोहन के द्वारा राम को भेजवाया जाता है । यहाँ पढ़ाया और भेजवाया प्रेरणा का ही उदाहरण है।धातु से होने वाले प्रत्यय को कृत् कहते हैं। वह कृत् जिसके अन्त में हो वह कृदन्त कहलाता है। जैसे- पठ् धातु से पाठक, कृ धातु से कारक बना।
संस्कृत में जिस पद का रूप न चलता हो वह अव्यय है। राम शब्द का कर्ताकारक आदि में रूप चलता है। धातु के भी लट् लकार आदि में रूप चलते हैं । परन्तु यथा, तथा, वा आदि अव्यय का रूप नहीं चलता है।
इस प्रकार यह व्याकरणविनोद सहजता से पाठक को व्याकरण का निचोड़ समझाने में उपयुक्त है । यह ग्रन्थ छात्र को दृष्टि में रखकर समझाने के लिये पण्डित ओझाजी ने लिखा है।
Read/download