प्रतिवेदन
श्रीशंकर शिक्षायतन वैदिक शोध संस्थान द्वारा दिनांक ३१ जुलाई, बृहस्पतिवार २०२५ को सायंकाल ५-७ बजे
तक अन्तर्जालीय माध्यम से राष्ट्रीय संगोष्ठी का समायोजन किया गया। पण्डित मधुसूदन ओझा प्रणीत
कादम्बिनी नामक ग्रन्थ के उल्काधिकार के विविध विषयों को आधार बना कर यह राष्ट्रीय संगोष्ठी समायोजित
की गई थी।
डॉ. यज्ञदत्त, सहायक आचार्य, ज्योतिष विभाग, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, वेद व्यास परिसर, ने अपने
वक्तव्य में कहा कि अन्तरिक्ष में पाँच प्रकार की अग्नियाँ उत्पन्न होती हैं। इनके नाम हैं- वज्र, विद्युत्, महोल्का,
धिष्ण्या और तारा । वृष्टिविद्या में इन पाँचों को उल्का नाम से प्रतिपादन किया जाता है।
वज्रं विद्युन्महोल्का च धिष्ण्या तारेति पञ्चधा ।
उल्केति संज्ञया ख्याता अन्तरिक्षोद्भवाग्नयः॥ कादम्बिनी पृष्ठ १६८ कारिका २०१
इन पाँच में विद्युत् नामवाली और तारा नामवाली उल्का छः दिन तक लगातार दिखाई दे, महोल्का पन्द्रह दिन
तक दिखाई दे, वज्र और धिष्ण्या पैंतालिस दिन तक लगातार दिखाई दे तो उस वर्ष फसल की उपज अच्छी
होगी।
विद्युत्तारादिनैः षड्भिरुल्का पक्षेण वीक्षिता ।
वज्रं धिष्ण्या त्रिभिः पक्षैः फलपाकाय कल्पते ॥ वही, पृष्ठ १६८, कारिका २०२
डॉ. सुरेश शर्मा, सहायक आचार्य, ज्योतिष विभाग, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, श्रीरघुनाथकीर्ति परिसर ने
कादम्बिनी ग्रन्थ के प्रकीर्णाध्याय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रकीर्ण
अध्याय के विषयवस्तु को छः भागों में विभक्त किया गया है। ये हैं- राहु, केतु, तारा, दिग्दाह, धूल की वर्षा
(पांसु) और भूकम्प।
राहवः केतवस्तारा दिग्दाहः पांसुवर्षणम् ।
भूकम्पश्चेति षड् भावा उक्ता वैकारिकाह्वयाः ।। वही, पृष्ठ १७१, कारिका २१६
प्रकीर्ण अध्याय का पहला विषय राहु है। राहु में अपनी ज्योति और दूसरे की ज्योति नहीं रहती है। राहु प्रकाश
नहीं करता है। ये आकाश में रहते भी हैं और चलते भी हैं, इसका बोध नहीं होता है ।अर्थात् राहु गति संबन्धी
जो भी क्रिया को करता है, उसका कोई चिह्न नहीं बनता है।
राहवः स्व-पर-ज्योतीराहित्यादप्रकाशिनः ।
अपि सन्तोऽपि गच्छन्तो द्युमार्गेषु न भान्ति ये ॥ वही, पृष्ठ १७१, कारिका २१७
डॉ. गणेश कृष्ण भट्ट, सहायक आचार्य, ज्योतिष विभाग, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, गुरुवायूर परिसर, ने
अपने वक्तव्य में कहा कि प्रकीर्णाध्याय में राहु प्रथम विषय है। इसी राहु को स्वर्भानुराहु कहा जाता है। मार्गशीर्ष
मास में ग्रहण होने पर पुण्ड्रक नामक देश, काश्मीर नामक देश, कौशल नामक देश तथा भारत के पश्चिम भाग में
वर्षा नहीं होगी और देश के दूसरे भाग में वृष्टि, क्षेम और सुभिक्ष होता है।
मार्गे तु ग्रहणं हन्यात् मगधान् काशिकोशलान् ।
तथाऽपरान्तकान् शेषे वृष्टि-क्षेम-सुभिक्षकृत्॥ वही, पृष्ठ १७३, कारिका २४५
पौष मास में ग्रहण होने से सिन्धु नामक देश, विदेह नामक देश, कुकुर नामक देश की हानि करता है और देश के
दूसरे भाग में अल्पवृष्टि और दुर्भिक्ष होता है।
पौषे दृष्टं हन्ति सिन्धून् विदेहान् कुकुरांस्तमः।
देशान्तरे तु कुरुते दुर्भिक्षं स्वल्प-वर्षणम्॥ वही, पृष्ठ १७३., कारिका २४६
डॉ. रतीश कुमार झा, सहायक आचार्य, ज्योतिष विभाग, डॉ. जगन्नाथ मिश्र संस्कृत महाविद्यालय मधुवनी,
बिहार ने अपने वक्तव्य में कहा कि पृथ्वी, चन्द्रमा और बुध आदि परज्योति पिण्डों के प्रकाशरहित तमोमय आधे
भाग को स्वर्भानु कहते हैं।
ये परज्योतिषः पिण्डाः पृथ्वी-चन्द्र-बुधादयः।
तेषां प्रकाशितादर्द्धादर्द्धमन्यत् तमोमयम् ॥ वही, पृष्ठ १७२, कारिका २३२
तमोमय भाग से उत्पन्न तीन कोण वाली छाया को स्वर्भानु नाम के राहु कहते हैं। इनके स्वर्भाग में भानु रहता है,
इससे इनको स्वर्भानु कहते हैं।
तज्जाश्छायामयास्त्र्यस्त्रा उक्ताः स्वर्भानुराहवः।
स्वर्भागे भानुरस्त्येषा तस्मात् स्वर्भानवः स्मृताः॥ वही, पृष्ठ १७२., कारिका २३३
प्रो. सन्तोष कुमार शुक्ल, आचार्य, संस्कृत एवं प्राच्य विद्या अध्ययन संस्थान, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय,
नई दिल्ली ने कहा कि आज का विषय अत्यन्त ही प्रायोगिक है। प्रयोग के आधार पर ही इस विषय को समझा
जा सकता है। पण्डित ओझा जी ने वज्र के अनेक पर्याय शब्दों का उल्लेख किया है। इन शब्दों का विश्लेषण अर्थ
की दृष्टि से करना अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि इसका नाम अर्थ के आधार पर ही बना होगा। ह्रादिनी, वज्र,
आपोत्र, भिदिर, भिदुर, भिदु, जम्भारी, जाम्बवि, दम्भ, दम्भोलि, अशनि, पवि, शतधार, शतार, गौ, मेघ-
भूति, गिरिज्वर, शतकोटि, स्वरु, शम्ब, कुलिश, गिरिकण्टक इतने वज्र के नाम हैं ।
ह्रादिनी वज्रमापोत्रं भिदिरं भिदुरं भिदुः।
जम्भारिर्जाम्बविर्दम्भो दम्भोलिरशनिः पविः॥
शतधारं शतारङ्गौ मेघ-भूतिर्गिरि-ज्वरः।
शतकोटिः स्वरुः शम्बः कुलिशं गिरिकण्टकः॥ वही, पृष्ठ १६८., कारिका २०५-२०६
डॉ. आशीष मिश्र, अतिथि अध्यापक, वेद विभग, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, एकलव्य परिसर, त्रिपुरा ने
सस्वर वैदिक मङ्गलाचरण का पाठ किया। कार्यक्रम का सञ्चालन श्रीशंकर शिक्षायतन वैदिक शोध संस्थान के
शोध अधिकारी डॉ. लक्ष्मी कान्त विमल ने किया। इस कार्यक्रम में अनेक प्रान्तों के विश्वविद्याल और
महाविद्याल के आचार्य, शोधछात्र, संस्कृत विद्या मे रुचि रखने वाले विद्वानों