राष्ट्रीय संगोष्ठी –व्याकरणविनोदविमर्श
प्रतिवेदन व्याकरण विभाग, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय एवं श्रीशंकर शिक्षायतनवैदिक शोध संस्थान के संयुक्त तत्त्वावधान में “व्याकरणविनोदविमर्श ” विषय पर श्री लाल बहादुर शास्त्रीराष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के वाचस्पति सभागार में दिनांक 22 मार्च 2024 को एकदिवसीय राष्ट्रीयसंगोष्ठी का समायोजन किया गया। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्यावाचस्पति पं. मधुसूदन ओझा प्रणीतव्याकरणविनोद ग्रन्थ को आधार बनाकर आमन्त्रित विद्वानों द्वारा व्याख्यान प्रस्तुत किये गये।व्याकरणविनोद व्याकरणशास्त्र का एक अनुपम ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में पं ओझाजी ने व्याकरणशास्त्र केविषयों का नवीन शैली द्वारा सम्यक् प्रतिपादन किया है। यह ग्रन्थ अधोलिखित छः परिच्छेदों में विभक्त है- समास परिच्छेद : इस परिच्छेद के अन्तर्गत कुल पाँच समासों का भेदोपभेद सहित सम्यक्प्रतिपादन है। ये समास हैं- द्विरुक्त समास, द्वन्द्व समास, अव्ययीभाव समास, तत्पुरुष समास एवं बहुब्रीहिसमास। इस परिच्छेद का वैशिष्ट्य यह है कि इस परिच्छेद में प्रतिपादित समासों के विवेचन-क्रम मेंओझाजी ने आठ समासाश्रय विधियों का निरूपण करते हुए समासों का प्रतिपादन इन आठ विधियों केमाध्यम से किया है। ये आठ समासाश्रय विधि हैं-उपसर्जनविधि, समासान्तविधि, विकारादेश,विभक्तिलोपालोप, पुंवद्भाव, लिङ्गविधि, वचनविधि एवं स्वरविधि। तद्धित परिच्छेद : इस परिच्छेद में तद्धित के अन्तर्गत आने वाले प्रत्ययों- विभक्तिप्रत्यय, परिच्छिन्नप्रत्यय, भावकर्मप्रत्यय, स्त्रीप्रत्यय आदि का परिशीलन किया गया है।नामधातु परिच्छेद : इस परिच्छेद में तदिच्छा, तद्विचार, तदभूतभाव, तत्क्रियाख्यान एवं स्वार्थआदि में होने वाले क्यच्, क्यङ्, काम्यच्, णिङ् एवं णिच् आदि प्रत्ययों एवं तत्सम्बन्धी नियमों का विवेचनकिया गया है। इस परिच्छेद में कण्ड्वादिगण में पठित धातुओं का संकलन भी है।प्रक्रिया परिच्छेद : इस परिच्छेद में प्रमुखतया सन्नन्त एवं णिजन्त प्रयोगों के प्रक्रिया का विवेचनकिया गया है।कृदन्त परिच्छेद : इस परिच्छेद में कृदन्त के अन्तर्गत आने वाले केवल कृत्य प्रत्ययों का ही विवेचनकिया गया है। कृत्य प्रत्ययों के साथ सेट्-अनिट् एवं वेट् धातुओं का परिगणन भी इस परिच्छेद में किया गयाहै।अव्यय प्रकरण : इसके अन्तर्गत अव्ययों का प्रतिज्ञावीत, निपात एवं व्युत्पन्न रूप से त्रिधा विभक्तकर उनका सम्यक् प्रतिपादन किया गया है। यह संगोष्ठी दो सत्रों में सम्पन्न हुई। प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रो. जयकान्त शर्मा, संकायाध्यक्ष, वेद-वेदांग संकाय, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ने की जिसमें मुख्य वक्ता के रूप में प्रो.सत्यपाल सिंह, आचार्य, संस्कृत विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय ने तथा वक्ता के रूप में डॉ. दयाल सिंहपंवार, सह आचार्य व्याकरण विभाग, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ने व्याख्यानकिया। प्रो. राम सलाही द्विवेदी, विभागाध्यक्ष, व्याकरण विभाग, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृतविश्वविद्यालय ने विषय प्रवर्तन किया। इस सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीयसंस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुरली मनोहर पाठक की गरिमामयी उपस्थिति एवं प्रो. सन्तोषकुमार शुक्ल, आचार्य, संस्कृत एवं प्राच्यविद्या अध्ययन संस्थान, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय कासान्निध्य प्राप्त हुआ। द्वितीय सत्र प्रो. ओमनाथ विमली, विभागाध्यक्ष, संस्कृत विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय कीअध्यक्षता में सम्पन्न हुआ जिसमें प्रो. राजधर मिश्र, आचार्य, व्याकरण विभाग, जगद्गुरु रामानन्दाचार्यराजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर ने मुख्य वक्ता के रूप में व्याख्यान किया तथा वक्ता के रूप में डॉ.अभिमन्यु, सह आचार्य, संस्कृत विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, डॉ. कुलदीप कुमार,सहायक आचार्य, संस्कृत, पालि एवं प्राकृत विभाग, हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला एवंडॉ. सोमवीर, सहायक आचार्य, संस्कृत विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा व्याख्यान किये गये।उद्घाटन उद्बोधन में प्रो. मुरलो मनोहर पाठक ने पं. मधुसूदन ओझाजी के वाङ्मय के माध्यम सेवेदविज्ञान के प्रचार-प्रसार में निरन्तर संलग्न श्रीशंकर शिक्षायतन के अवदान का उल्लेख एवंव्याकरणविनोद ग्रन्थ के वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालते हुए समायोज्यमान संगोष्ठी की सफलता हेतु शुभकामनादिया। विषय-प्रवर्तन के क्रम में प्रो. राम सलाही द्विवेदी ने व्याकरणशास्त्र की परम्परा एवं वैशिष्ट्य काउल्लेख करते हुए व्याकरणविनोद ग्रन्थ के प्रतिपाद्य पर विशद-विवेचन प्रस्तुत किया।प्रो. सत्यपाल सिंह ने अपने वक्तव्य में नामधातु परिच्छेद के अन्तर्गत विवेचित प्रक्रिया भाग परविमर्श करते हुए इस प्रकरण में विवेचित नामधातु के स्वरूप एवं वैशिष्ट्य पर विस्तार से व्याख्यान दिया।इस क्रम में उन्होंने नामधातु विषयक पं. ओझा द्वारा उल्लिखित अनेक उदाहरणों का भी उल्लेख किया। डॉ. दयाल सिंह पंवार ने प्रक्रिया परिच्छेद पर व्याख्यान देते हुए इस परिच्छेद में विवेचित सन्नन्तएवं णिजन्त प्रत्ययों के स्वरूप, वैशिष्ट्य एवं अनेक उदाहरणों द्वारा इस ग्रन्थ की विशेषता को रेखांकितकिया। प्रो. सन्तोष कुमार शुक्ल ने अपने उद्बोधन में श्रीशंकर शिक्षायतन की शैक्षणिक गतिविधियों काउल्लेख करते हुए पं. ओझाजी के द्वारा प्रणीत व्याकरणविनोद ग्रन्थ के नाम पर विचार करते हुए इस ग्रन्थको व्याकरणशास्त्र के शोधार्थियों एवं अध्येताओं के लिए अत्यन्त उपादेय बतलाया।अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. जयकान्त शर्मा ने कहा कि व्याकरणशास्त्र की परम्परा में अनेक सम्प्रदायोंका उल्लेख मिलता है जिनका इस शास्त्र के विकास में अनन्य योगदान है। सम्प्रति पाणिनि व्याकरण प्रचलनमें अवश्य है लेकिन हमें पाणिनि से भिन्न व्याकरणशास्त्र के अन्य सम्प्रदायों की भी अवहेलना नहीं करनीचाहिए। पं. ओझाजी ने भी व्याकरणविनोद में कई स्थलों पर ऐसे उदाहरणों का प्रयोग किया है जो पाणिनिव्याकरण के अनुसार सिद्ध नहीं हो सकते हैं। प्रो. राजधर मिश्र ने तद्धित परिच्छेद पर व्याख्यान करते हुए कहा कि इस ग्रन्थ में पं. ओझाजी नेवैदिक एवं लौकिक दोनों ही शब्दों को केन्द्र में रखकर इस ग्रन्थ का निर्माण किया है। इसलिए प्रत्येकपरिच्छेद में उन्होंने जो नियम दिये हैं वे सामान्यतया लौकिक एवं वैदिक दोनों ही शब्दों के लिए हैं। इस क्रममें उन्होंने ओझाजी के द्वारा दी गयी तद्धित की परिभाषा एवं अनेक उदाहरणों का उल्लेख करते हुए इसपरिच्छेद पर व्यापक रूप से विमर्श किया। डॉ. अभिमन्यु ने कृदन्त परिच्छेद पर व्याख्यान देते हुए इस प्रकरण में पं. ओझाजी के द्वारा दिये गयेअनेक उदाहरणों का उल्लेख कर इस ग्रन्थ के वैशिष्ट्य को रेखांकित किया । उन्होंने बताया कि इस परिच्छेदमें ग्रन्थकार ने कुल ९१७ उदाहरणों का उल्लेख किया है जिनमें यत् प्रत्यय के १२३, ण्यत् प्रत्यय के १११,क्यप् प्रत्यय के ६९, केलिमर् प्रत्यय के ८२, अनीयर् प्रत्यय के ९७, तव्य-तव्यत् के ४३५ उदाहरण हैं। इसप्रकार उन्होंने बतलाया कि कृदन्त प्रत्यय के इतने उदाहरण किसी भी व्याकरण के प्रक्रिया ग्रन्थ में नहीं है।जो इस ग्रन्थ के वैशिष्ठ्य को प्रमाणित करता है।डॉ. कुलदीप कुमार ने अपने व्याख्यान में अव्यय परिच्छेद के अन्तर्गत विवेचित प्रतिज्ञावीत, व्युत्पन्नएवं निपात रूप अव्यय के तीन स्वरूपों का सांगोपांग विवेचन प्रस्तुत किया।डॉ. सोमवीर ने समास परिच्छेद के अन्तर्गत विवेचित अव्ययीभाव समास को आधार बनाकरव्याख्यान दिया जिसमें उन्होंने ओझाजी के समास विषयक रोचक शैली का भी विवेचन किया।अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. ओमनाथ विमली ने व्याकरणदर्शन एवं नामधातु पर प्रकाश डालते हुएओझाजी के व्याकरणविनोद ग्रन्थ को व्याकरणशास्त्र की अनुपम कृति बतलाकर शोधार्थियों को इस ग्रन्थ काअध्ययन करने हेतु प्रेरित किया। उन्होंने यह आशा व्यक्त करते…