राष्ट्रीय संगोष्ठी कादम्बिनी : निमित्ताध्याय विमर्श (शृंखला-०४)

प्रतिवेदन 

श्रीशंकर शिक्षायत वैदिक शोध संस्थान के द्वारा ३० अप्रैल, बुधवार को सायंकाल ५- ७ बजे तक अन्तर्जालीय माध्यम से एक राष्ट्रीय संगोष्ठी समायोजित की गयी। पण्डित मधुसूदन ओझा जी द्वारा प्रणीत कादम्बिनी नामक ग्रन्थ के निमित्ताध्याय में गर्भरूप, वात, उत्पादक, स्थापक, मेघ, विद्युत्, गर्जित और वृष्टि विषय  पर विचार किया गया है। निर्धारित ग्रन्थांश में १०६ कारिकाएँ समाहित हैं।  उन्हीं कारिकाओं में निबद्ध विषयों को आधार बना कर यह राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई ।

प्रो. फणीन्द्र कुमार चौधरी, आचार्य, ज्योतिष विभाग, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली ने मुख्य वक्ता के रूप में अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि मेघ के गर्भ का गर्जित यह चौथा रूप है। वर्षाकाल में आकाश में जो शब्द होता है।  उसके तीन कारण हैं- मेघ से, वज्र से और वायु से शब्द होता है। इसके लिए ग्रन्थकार ने चार नामों का उल्लेख किया है। गर्जित, स्तनित, मेघनिर्घोष और रसित।

                                    मेघाद् वज्राच्च वाताच्च शब्दस्त्रेधाऽन्तरिक्षजः।

                                    गर्जितं स्तनितं मेघनिर्घोषो रसितं च तत्॥ कादम्बिनी पृ. १३९, का.९३

वर्षा के लिए संस्कृत में वृष्टि और वर्ष शब्द है, बर्षा न होने के लिए अवग्रह और वग्रह शब्द है। वर्षा के दूसरे रूप के लिए करका और हिमपात शब्द प्रयुक्त होता है।

                                    वृष्टिर्वर्षं तद्विघातेऽवग्रहवग्रहौ समौ ।

                                    करका हिमपाताश्च वृष्टेरेवापरा विधा ॥ वही, पृ. १४०, का.१०६

डॉ. बालकराम सारस्वत, सहायक आचार्य, ज्योतिष विभाग, राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,  तिरुपति  ने अपने सारगर्भित वक्तव्य में कहा कि कादम्बिनी ग्रन्थ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।  उन्होंने कहा कि  मेघ के विद्युत् स्वरूप पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि विद्युत् के नामों का संग्रह किया है। ये २९ नाम हैं- विद्युत्, क्षणप्रभा, मेघप्रभा, वीपा, अचिरप्रभा, ह्रादिनी, ऐरावती, चम्पा, शम्पा, सौदामिनी, तडित्, आकालिकी, शतावर्ता, जलदा, जलपालिका, क्षणांशु, क्षणिका, राधा, चटुला चिलमीलिका, सर्जू, अचिररोचि, चपला, चञ्चला, चला, शतह्रदा, असनि, नीलाञ्जना और अस्थिरा । विद्युत् के इतने नाम एक साथ अमोरकोश में नहीं मिलता है।  इन्हीं नामों में १० नाम अमरकोश में पठित है।

                                    विद्युत् क्षणप्रभा मेघप्रभा वीपाऽचिरप्रभा ।

                                    ह्रादिन्यैरावती चम्पा शम्पा सौदामिनी तडित् ॥

                                    आकालिकी शतावर्ता जलदा जलपालिका ।

                                    क्षणांशु क्षणिका राधा चटुला चिलमीलिका ॥

                                    सर्जूरचिररोचिश्च चपला चञ्चला चला ।

                                    शतह्रदाऽशनिर्नीलाञ्जना च तडिदस्थिरा॥ वही, पृ. १३७, का.७२-७४

डॉ. भूपेन्द्र कुमार पाण्डेय, सहायक आचार्य, ज्योतिष विभाग,  केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, भोपाल परिसर, ने वक्ता के  शीतकाल में दिग्गज जाति के मेघ एवं हिम की वर्षा होती है। मेघ के दूसरे रूप हैं- पुष्कर, आवर्त, संवर्त, और द्रोण । जो मेघ कष्टपूर्वक वृष्टि करता है वह पुष्कर नामक मेघ है। जो मेघ वृष्टि करता ही नहीं है वह आवर्त नामक मेघ है। जो मेघ अधिक वृष्टि करता है वह संवर्त नामक मेघ है। जो मेघ फसल के उपयोगी वृष्टि करता है वह  द्रोण नामक मेघ है।

                                    हिमवृष्टिं तु कुर्वन्ति शीतकाले हि दिग्गजाः।

                                    पुष्करावर्तसंवर्तद्रोणाः स्युर्मेघजातयः ॥

                                    पुष्करो दुष्करोदः स्यादावर्तो निर्जलो घनः।

                                    बहूदकस्तु संवर्तो द्रोणः सस्यप्रपूरकः॥ वही, पृ. १३५, का.४२-४३                

डॉ. वरुण कुमार झा,  सहायक आचार्य, ज्योतिष विभाग, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा ने वक्ता के रूप में विषय को उद्घाटित करते हुए कहा कि मेघ वृष्टि के लिए गर्भ धारण करता है। मेघ का यह गर्भ धारण पाँच रूपों में होता है। ये हैं- हवा, मेघ, बिजली, गर्जना और वृष्टि। इन्हीं के महावात और झञ्झावात आदि नाम हैं।

                                      गर्भरूपाणि वाताभ्रविद्युत्स्तनित-वृष्टयः।

                                      एषां भेदा महावाताझञ्झावातादयः पृथक्॥ वही, पृ. १३१, का.४

प्रो. सन्तोष कुमार शुक्ल, आचार्य, संस्कृत एवं प्राच्य विद्या अध्ययन संस्थान, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि आज का जो  निमित्ताध्याय विषय है, इससे पूर्व के अध्याय में मासों के आधार पर मेघ के गर्भनिर्धारण के नियम का प्रतिपादन हुआ था। अक्षयतृतीया के क्रम में शकुनपरीक्षा, अमत्रपरीक्षा, काकपरीक्षा, बिम्बपरीक्षा, धान्यपरीक्षा, लोष्टपरीक्षा, नक्षत्रपरीक्षा, गर्भपरीक्षा, वायुपरीक्षा और अत्युग्रवातपरीक्षा की चर्चा की गई थी। वायुपरीक्षा के अन्तर्गत ही आज का  निमित्ताध्याय विषय है। इस में वायु के विभिन्न स्थिति को रेखांकित किया गया है।

डॉ. सुधाकर कुमार पाण्डेय, सहायक आचार्य, वेदविभाग, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर परिसर ने सस्वर वैदिक मङ्गलाचरण किया। कार्यक्रम का सञ्चालन श्रीशंकर शिक्षायतन वैदिक शोध संस्थान के शोध अधिकारी डॉ. लक्ष्मी कान्त विमल ने किया । इस कार्यक्रम में अनेक प्रान्तों के विश्वविद्याल और महाविद्याल के आचार्य, शोधछात्र, संस्कृत विद्या मे रुचि रखने वाले विद्वानों ने उत्साह पूर्वक भाग ग्रहण कर संगोष्ठी को सफल बनाया।

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