राष्ट्रीय संगोष्ठी -कादम्बिनी : (शृंखला-०२)


प्रतिवेदन

श्रीशंकर शिक्षायत वैदिक शोध संस्थान के द्वारा २८ फरवरी, शुक्रवार को सायंकाल ५- ७ बजे तक अन्तर्जालीय
माध्यम से एक राष्ट्रीय संगोष्ठी समायोजित की गयी। पण्डित मधुसूदन ओझा जी द्वारा प्रणीत कादम्बिनी नामक
ग्रन्थ के मासिकाध्याय के कार्तिक मास से प्रारम्भ होकर चैत्र मास तक के छः मासों के आधार पर वृष्टि विषयक
विचार किया गया है। निर्धारित ग्रन्थांश में २१५ कारिकाएँ समाहित हैं। उन्हीं कारिकाओं में निबद्ध विषयों को
आधार बना कर यह राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई ।
प्रो. गिरिजा शंकर शास्त्री, आचार्य, ज्योतिष विभाग, संस्कृतविद्या धर्मविज्ञान संकाय, काशी हिन्दू
विश्वविद्यालय, वाराणसी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। उन्होंने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि इस
कादम्बिनी नामक ग्रन्थ में कार्तिकमास में नक्षत्र की स्थिति से वर्षा ऋतु में वर्षा के लक्षण पर विचार किया गया
है। कार्तिक मास के शुक्लपक्ष में द्वितीया तिथि को अथवा तृतीया तिथि को वर्षा होने से उस वर्ष अत्यधिक वर्षा
का अनुमान किया जाता है। यदि इन दोनों तिथि को वर्षा न हो तो वर्षा ऋतु में भी वर्षा नहीं होगी।

कार्तिकस्य द्वितीया वा तृतीया वापि वर्षति।
भाविवर्षे बहुजलं न चेत्तस्मिन्नवर्षणम्॥ कादम्बिनी पृष्ठ १७, कारिक ५

उन्होंने कहा कि पण्डित मधुसूदन ओझा जी ने पूर्ववर्ती ग्रन्थों का सम्यक् आलोडन कर के उन उन ग्रन्थों के
सिद्धान्तों को समझ कर नवनीत के रूप में यह ग्रन्थ लिखा है। वर्षप्रबोध और वनमाला आदि ग्रन्थों में सन्निहित
विषयों को सरलता पूर्वक यहाँ प्रस्तुत किया है। पं. ओझा जी ने चैत्रमास के विषय पर लिखते हुए कहा है कि
चैत्र मास में रेवती नक्षत्र पर सूर्य के विद्यमान रहने पर एवं तेरह दिन तक जिस जिस स्थान पर हवा चलती है,
जिस जिस स्थान पर बादल बनता है और बिजलियाँ चमकती हैं। ऐसी सुयोग होने पर मेघ का गर्भ धारण
अच्छा समझा जाता है। वर्षा ऋतु में अच्छी वृष्टि होगी।

रेवत्या अर्कभोग्येषु त्रयोदशदिनेष्वपि ।
यत्राभ्रं पवनो विद्युत् तत्र गर्भः शुभावहः॥ कादम्बिनी पृष्ठ ४३, कारिक १५३

डॉ. कृष्ण कुमार भार्गव, सहायक आचार्य, ज्योतिष एवं वास्तु विभाग, राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति
ने अपने सारगर्भित वक्तव्य में कहा कि कादम्बिनी ग्रन्थ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। मासों के सन्दर्भ में मेघ के गर्भ का
निरूपण और मेघ के उस गर्भ का वर्षा ऋतु में परिणत होना, यह एक जलसंबन्धी वैज्ञानिक सिद्धान्त है।
अग्रहणमास के आलोक में बोलते हुए उन्होंने कहा कि अग्रहणमास में, पौषमास में और माघमास में बर्फ के
गिरने से सूर्य और चन्द्रमा यदि मलिन होते हैं और लालरंग के होते हैं तो आषाढ मास के शुक्लपक्ष के सप्तमी
तिथि से तीन दिन तक वर्षा नहीं होगी।

तुषारमलिनौ ताम्रौ चन्द्रार्कौ मार्गतस्त्रये ।
आषाढशुक्लसप्तम्यारब्धे वृष्टिर्दिनत्रये ॥ कादम्बिनी पृष्ठ २०, कारिक १९

फाल्गुन मास में हमेशा आकाश में बादल लगे रहे और वृष्टि नहीं हो रही हो तो मेघ का गर्भ समझना चाहिए।
मेघ के इस गर्भ धारण से वर्षाऋतु में अच्छी वृष्टि का सुयोग बनता है।

फाल्गुने नित्यमभ्रं स्यान्न तु पातयते जलम् ।
गर्भदोहद-सम्पत्तिं विद्याद् वृष्टिः शुभा भवेत्॥ कादम्बिनी पृष्ठ ३९, कारिक १२५

डॉ. अश्विनी पाण्डेय, सहायक आचार्य, ज्योतिष विभाग, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, भोपाल परिसर, ने
वक्ता के रूप में विषय को उद्घाटित करते हुए कहा कि वृष्टि जीवन के किए आवश्यक तत्त्व है। बिना पानी का
जीवन संभव नहीं है। पानी ही अन्न का कारण है। पण्डित मधुसूदन ओझा जी ने मासिकाध्याय में प्रत्येक मास में
मेघ के गर्भ निर्धारण के लक्षण का सुन्दर निरूपण किया है। पौषमास में चन्द्रमा को आधार बना कर विचार
किया गया है। यह चन्द्रमा मूल नामक नक्षत्र से लेकर भरणी नामक नक्षत्र तक रहता है। मूल, पूर्वाषाढ,
उत्तराषाढ, श्रवणा, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वभाद्र, उत्तरभाद्र, रेवती, अश्विनी और भरणी कुल ग्यारह नक्षत्र हैं।
सूर्य को आधार बना कर विचार किया गया है। सूर्य आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वफल्गुनी,
उत्तरफल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती और विशाखा कुल ग्यारह नक्षत्र हैं। पौष मास में वर्णित नक्षत्रों में मेघ गर्भ
का धारण होता है और ज्येष्ठ मास में आर्द्रा नक्षत्र में अच्छी वृष्टि का योग बनता है।

पौषे मूलाद् भरण्यन्तं चन्द्रचारेण गर्भति।
आर्द्रादिभे विशाखान्ते सूर्यचारेण वर्षति॥ कादम्बिनी पृष्ठ २४, कारिक ४१

डॉ. आशीष कुमार चौधरी, सहायक आचार्य, ज्योतिष विभाग, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, भोपाल परिसर,
ने वक्ता के रूप में विषय को उद्घाटित करते हुए कहा कि इस ग्रन्थ में वृष्टि के निमित्त पर विशेष ध्यान दिया
गया है। किस मास में किस निमित्त के रहने पर वर्षाकाल में अच्छी वृष्टि होगी अथवा वृष्टि नहीं होगी इस पर
विस्तार से विचार किया गया है। माघमास में मूल नक्षत्र से भरणी नक्षत्र तक बिजली चमके, बिजली की गर्जना
हो, पूर्व दिशा वाली और उत्तर दिशा वाली हवा चलती हो तो वर्षा ऋतु में आर्द्रा नक्षत्र से विशाखा नक्षत्र तक
सूर्य के आने पर अच्छी वृष्टि का योग बनता है।

पौषारब्धोडुसंदोहे मूलाद्ये भरणीपरे।
विद्युद्गर्जितवाताभ्रैरार्द्रार्कादिषु वृष्टयः॥ कादम्बिनी पृष्ठ ३२, कारिक ८८

डॉ. प्रकाश रञ्जन मिश्र, सहायक आचार्य एवं समन्वयक, वेद-पौरोहित्य-कर्मकाण्ड विद्याशाखा, केन्द्रीय संस्कृत
विश्वविद्यालय, एकलव्य परिसर ने सस्वर वैदिक मङ्गलाचरण किया। कार्यक्रम का सञ्चालन श्रीशंकर
शिक्षायतन वैदिक शोध संस्थान के शोध अधिकारी डॉ. लक्ष्मी कान्त विमल ने किया । इस कार्यक्रम में अनेक

प्रान्तों के विश्वविद्याल और महाविद्याल के आचार्य, शोधछात्र, संस्कृत विद्या मे रुचि रखने वाले विद्वानों ने
उत्साह पूर्वक भाग ग्रहण कर संगोष्ठी को सफल बनाया।

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