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Sharirakavimarsha

Pandit Madhusudan Ojha divided his work on veda vijnana into four divisions–brahmavijnana, yajnavijnana, itihasapurana and vedanga-samiksha. There are 108 volumes in total. Brahmavijnana contains works on Creation and related subjects. Sharirika-vimarsha, consisting of sixteen chapters, is among important works under Brahmavijnana. Pandit Madhusudan Ojha has given a detailed explanation of `sharirik darshan`or corporeal philosophy. He has scientifically explained many concepts. The volume contains an explanation of Brahma, Veda, Veda-dhyan, Vijnana-veda, Shabdamaya-veda, upanishad and philosophy. शरीरकविमर्शायह शारीरक दर्शन पर लिखा गया ओझा जी का एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है जो स्वतन्त्र रूप से शारीरकदर्शन के विषयों पर आलोचनात्मक प्रकाश डालते हुए उनका वैज्ञानिक ढंग से सारतत्त्व प्रस्तुत करता है । सोलह प्रकरणों में विभाजित यह ‘शारीरकविमर्श’ सभी शास्त्रों का निचोड़ और वेद के रहस्य का प्रशस्त मार्गदर्शक है । इस ग्रन्थ में ब्रह्म, वेद, वेदाध्ययन, विज्ञानवेद, शब्दमयवेद, वेदप्रादुर्भाव, उपनिषद् पद का तात्पर्य, दर्शनशास्त्र, वेदान्तसूत्र, गीताशास्त्रनिरुक्ति, आत्मब्रह्ममीमांसा, ईश्वरात्मनिरुक्ति आदि विषयों का वैज्ञानिक विवेचन प्रस्तुत किया गया है । Read/download

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Yajnasarasvati

This is a treatise on yajna written by Pandit Madhusudan Ojha as part of his works on yajna vijnana. This treatise has two sections namely Somakhand and Agnichayankhand. In Somakand, the method of yajnas from Ishti to Rajsuya yajna has been explained in a simple manner, while in Agnichayankhand, the Chayan Vidya and its method and the making of Chitis have been explained very beautifully with simple and coloured maps. Along with the above two sections, information about two other sections namely Khilkhand and Uparikhand has been given in the list but their details are not available at present. यज्ञसरस्वती यह यज्ञविज्ञान नामक ग्रन्थविभाग के अन्तर्गत लिखा गया याज्ञिक विषयों का प्रतिपादक ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ के सोमकाण्ड एवं अग्निचयनकाण्ड नामक दो खण्ड हैं । सोमकाण्ड के अन्तर्गत जहाँ इष्टि से लेकर राजसूययज्ञ तक के यज्ञों की पद्धति सरल रीति से बतलायी गयी है वहीं अग्निचयनकाण्ड में चयनविद्या एवं उसकी पद्धति तथा चितियों का निर्माण सादा एवं रंगीन नक्शों के साथ बहुत ही सुन्दरता से प्रतिपादित किया गया है । उक्त दो काण्डों के साथ खिलकाण्ड एवं ऊपरिकाण्ड नामक दो अन्य काण्डों की सूचना सूची में दी गयी है लेकिन उनका विवरण सम्प्रति उपलब्ध नहीं है । Read/download See Hindi translation of the book here—https://shankarshikshayatan.org/yajnasarasvati-2/

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Vastusameeksha

In this volume, Pandit Madhsudan Ojha has examined `padarth` or `material` in Vedic vijnana. The volume deals with four subjects including padarthvijnana (material science).  Ojhaji has compared modern scientific views with that of Veda vijnana to explain several complex subjects of science. In the context of fire, he has explained the elements of  heat, light and electricity. There is a vivid explanation of heat in this volume wherein Ojhaji has examined `heat` as `energy`. This volume provides a bridge between the modern science and science as enunciated in the Veda. वस्तुसमीक्षावस्तुसमीक्षा में वस्तु का अर्थ पदार्थ एवं समीक्षा का अर्थ विचार है। इस ग्रन्थ में वैदिकविज्ञान के अनुसार पदार्थ के स्वरूप पर विचार किया गया है। इस में मुख्यरूप से चार विषयों को समाहित किया गया है-पदार्थविज्ञान, रसायनविज्ञान, दृग्विज्ञान एवं अंशुविज्ञान । पण्डित ओझा जी ने इस ग्रन्थ में आधुनिक वैज्ञानिक तत्त्वों का वैदिकविज्ञान के परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण करने का प्रयास किया है। अग्नि के स्वरूप प्रतिपादन के क्रम में ताप, आलोक और विद्युत् का विश्लेषण किया गया है। ताप के ही विविध आयामों को यहाँ सम्पूर्ण ग्रन्थों में स्पष्ट किया गया है। प्रतीत होता है कि पण्डित ओझा जी ने आधिनुक इनर्जी (energy) के अर्थ में ताप के महत्त्व को उद्घाटित किया है। इस प्रकार यह ग्रन्थ वर्तमान समय में इसलिए उपयोगी है क्योंकि सभी जगह विज्ञान की ही चर्चा चल रही है। संस्कृत में विज्ञान का जो स्रोत है, वह यहाँ देखने को मिलता है। Read/download

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Jagadguruvaibhavam

Pandit Madhusudan Ojha wrote Jagadguruvaibhavam to expand the meaning and scope of his earlier work, Indravijayah.  In this volume, he expands on the theme of Brahma, underlining the significant importance of Brahma in Creation. He has described different forms of Brahma. जगद्गुरुवैभवम् यह ब्रह्मविज्ञान के अन्तर्गत दिव्यविभूति नामकग्रन्थविभाग का पहला ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ में ब्रह्मा विषयक विविध प्रश्नों का सयुक्तिक समाधान किया गया है, यथा-ब्रह्मा कोई ऐतिहासिक व्यक्ति थे? अथवा इनका कोई वैज्ञानिक स्वरूप भी है? ऐतिहासिक ब्रह्मा कौन थे, वे कब और कहाँ हुए? वैज्ञानिक ब्रह्मा का क्या स्वरूप है? दोनों ब्रह्माओं का विश्वकर्तृत्व और विश्वगोप्तृत्व किस प्रकार है? वैज्ञानिक व ऐतिहासिक अथवा कौन हैं? उनका स्वरूप क्या है? आदि विषयों का निरूपण प्रस्तुत ग्रन्थ में किया गया है । Read/download

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Vedadharmavyakhyanam

This is the collection of Pandit Madhusudan Ojha’s talks on dharma and related subject during his foreign travels. वेदधर्मव्याख्यानम् यह उनकी विदेश यात्रा के दौरान धर्म और संबंधित विषय पर पंडित मधुसूदन ओझा की वार्ता का संग्रह है । Read/download

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Chhandasameeksha

Pandit Madhusudan Ojha has explained the science of Vedic metre in this volume. `Chhanda` is one of the six Vedangas. छन्दःसमीक्षा छन्दःशास्त्र के विश्लेषण हेतु ओझा जी ने इस ग्रन्थ की रचना की है । इस ग्रन्थ में छन्दस्तत्त्व की समीक्षा की गयी है जिसमें पद्यच्छन्दोवेदगत शिक्षा, गणित, निरुक्ति, व्याकरण व कल्पभेद से पाँच अङ्ग प्रतिपादित हैं । अर्थात् इस पद्यच्छन्दोवेद में छन्दःशिक्षा, छन्दोगणित, छन्दोनिरुक्ति, छन्दोव्याकरण एवं छन्दोकल्प इन पाँच अङ्गों का निरूपण किया गया है । Read/download

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Dharmapariksha Panjika

The title of the book explains its contents. The `dharma` in the title refers to virtuous behaviour and `pariksha` means thoughts. This book, in essence, is a text of thoughts on virtuous behavior. This is a Hindi translation. In this compact volume, five subjects of dharma have been explained. What is the origin of dharma? What are the benefits of following dharma? धर्मपरिक्षा पंजिकाधर्मपरीक्षा में जो धर्म है उसका अर्थ संस्कार है एवं परीक्षा का अर्थ विचार है। इस प्रकार धर्मपरीक्षा का अर्थ है- संस्कारों का विचार। कापी को पञ्जिका कहते हैं। सामान्यतया जिसमें हमलोग लिखते हैं उसे संस्कृत में पञ्जिका कहते हैं। इस लघुकाय ग्रन्थ में धर्म के पाँच विषयों को स्पष्ट किया गया है। पहला विषय धर्म का मूल क्या है, इस पर विचार है। पुनः धर्म के फल का प्रतिपादन है। इसी क्रम में फल के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए पण्डित ओझा जी ने कहा है कि- अध्याहार, परिहार और अभ्युन्नति, ये तीन प्रकार के फल हैं। विभक्तिरहस्य और नियामक रहस्य में धर्मों की सूक्ष्माता से विचार है। इस प्रकार यह ग्रन्थ धर्म विषयक विवेचना के लिए अत्यन्त ही उपयोगी है। Read/download

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Vyakyaranavinod

Vyakaranvinod is a simplified text on Sanskrit grammar written by Pandit Madhusudan Ojha. In six chapters, Ojhaji has explained the intricacies of language and grammar in a comprehensive manner. Ojhaji had kept students of Sanskrit in mind while writing this book. व्याकरणविनोदः पण्डित मधुसूदन ओझा के वेदाङ्गसमीक्षा खण्ड में वाक्पदिका नामक विभाग में ‘व्याकरणविनोद’ ग्रन्थ का स्थान है। व्याकरण भाषा में प्रयोग होने वाले शब्दों को सिद्ध करने का कार्य करता है। विनोद पद का अर्थ अनायास या सहज है। जो ग्रन्थ भाषासम्बन्धी विषय को सरलता से पाठक को समझा दे उस ग्रन्थ को व्याकरणविनोद कहते हैं। इस ग्रन्थ में छह प्रकरण हैं- १. समासपरिच्छेद २. तद्धितपरिच्छेद ३. नामधातुपरिच्छेद ४. प्रक्रियापरिच्छेद ५. कृदन्तपरिच्छेद और ६. अव्ययपरिच्छेद ।समासपरिच्छेद में समास को बताया गया है। समास दो या इससे अधिक शब्दों को जोड़ने को समास कहते हैं। समास के ये भेद हैं-द्विरुक्तसमास, द्वन्द्वसमास, अव्ययीभावसमास, तत्पुरुषसमास, बहुव्रीहि हैं। जो प्रत्यय शब्द से होते हैं उसे तद्धित प्रत्यय कहते हैं। जैसे- समाज शब्द से सामाजिक, सुन्दर शब्द से सुन्दरता, शिक्षा शब्द से शैक्षिक आदि अनेक शब्द बनते हैं।नाम अर्थात् संज्ञाशब्द से धातु बनाने की प्रक्रिया का नामधातु है । जैसे कारित का अर्थ प्रेरणा है। णिच् प्रत्यय से यह शब्द बनता है। जैसे राम पढ़ता है, शिक्षक के द्वारा राम पढ़ाया जाता है। राम जाता है । मोहन के द्वारा राम को भेजवाया जाता है । यहाँ पढ़ाया और भेजवाया प्रेरणा का ही उदाहरण है।धातु से होने वाले प्रत्यय को कृत् कहते हैं। वह कृत् जिसके अन्त में हो वह कृदन्त कहलाता है। जैसे- पठ् धातु से पाठक, कृ धातु से कारक बना। संस्कृत में जिस पद का रूप न चलता हो वह अव्यय है। राम शब्द का कर्ताकारक आदि में रूप चलता है। धातु के भी लट् लकार आदि में रूप चलते हैं । परन्तु यथा, तथा, वा आदि अव्यय का रूप नहीं चलता है। इस प्रकार यह व्याकरणविनोद सहजता से पाठक को व्याकरण का निचोड़ समझाने में उपयुक्त है । यह ग्रन्थ छात्र को दृष्टि में रखकर समझाने के लिये पण्डित ओझाजी ने लिखा है।Read/download

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Vijnanavidyut

Vijnana Vidyut is an important work on Brahma vijnana by great vedic savant, Pandit Madhusudan. The term vidyut means illumination. As everything becomes clear in the glare of a lightening in the sky, reading this volume will enable a reader to understand Brahma vijnana easily. The reader will be like a traveler in utter darkness who finds his path in a burst of lightness. The path of finding vedic knowledge is like walking in darkness and this volume offers illumination like a lightening to the seeker. Brahma vijnana or the science of Brahma is a vivid and complex science and Ojhaji’s volume acts as a map of vedic science. विज्ञानविद्युत् पण्डित मधुसूदन ओझा ने ब्रह्मविज्ञान को सरलता से समझाने के लिए एक छोटा ग्रन्थ संस्कृत में लिखा है। जो जिज्ञासु ब्रह्मविज्ञान के विषय का अध्ययन करना चाहते हैं उनके लिए यह प्राथमिक प्रवेशिका ग्रन्थ है। ‘विज्ञानविद्युत्’ इस नाम में दो शब्द हैं विज्ञान और विद्युत् । विज्ञान का अर्थ ब्रह्मविज्ञान एवं विद्युत् का अर्थ प्रकाश है। इस प्रकार ब्रह्मविज्ञान संबन्धी विद्या को प्रकाशित करने वाला ग्रन्थ विज्ञानविद्युत् है। इस लघुग्रन्थ में अध्याय के नाम को ‘प्रकाश’ शब्द से प्रस्तुत किया गया है। इस में पाँच प्रकाश हैं । प्रथम प्रकाश में ब्रह्म के चार पादों का वर्णन किया गया है। पुर, पुरुष, परात्पर और निर्विशेष इन चार तत्त्वों का विवेचन किया गया है। द्वितीय प्रकाश में क्षर, अक्षर और अव्यय पुरुष का विस्तार से वर्णन किया गया है। यहाँ इस के पाँच स्वरूपों का वर्णन उपलब्ध है। क्षर तत्त्व पाँच हैं- कारणशरीर, सूक्ष्मशरीर, स्थूलशरीर, प्रजावर्ग और वित्तवर्ग। अक्षर तत्त्व पाँच हैं- ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र, सोम और अग्नि। अव्यय तत्त्व पाँच हैं- आनन्द, विज्ञान, मन, प्राण और वाक् । तृतीयप्रकाश में प्राणमय स्वयम्भू, आपोमय परमेष्ठी विष्णु, वाक् स्वरूप सूर्य, अन्नादमय पृथ्वी का और अन्नमय चन्द्रमा वर्णन किया गया है। चतुर्थ प्रकाश में आत्मा के विविध स्वरूपों का वर्णन है। ब्रह्मविज्ञान में स्वयम्भू मण्डल, परमेष्ठी मण्डल, सूर्य मण्डल, चन्द्र मण्डल और पृथ्वीमण्डल ये मण्डल पाँच है। स्वयम्भू मण्डल की आत्मा प्राणमय शान्तात्मा है, परमेष्ठी मण्डल की आत्मा आपोमय महानात्मा विष्णु है, सूर्यमण्डल की आत्मा विज्ञानात्मा वाक् रूप इन्द्र है, चन्द्र मण्डल की आत्मा प्रज्ञानात्मा अन्नमय और सोम है, पृथ्वी मण्डल की अत्मा भूतात्मा है और अन्नाद स्वरूप अग्नि है। Read/download

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Brahmavijnana

Brahmavijnana is the only work of Pandit Madhusudan Ojha which  is originally written in Hindi. It is a text of his discourse on Brahma. Brahmavijnana is about all the subjects related to Brahma. Here, Ojhaji has explained in simple terms the meaning of prana or life-force.    ब्रह्माविज्ञान ब्रह्माविज्ञान पंडित मधुसूदन ओझा की एकमात्र कृति है जो मूल रूप से हिंदी में लिखी गई है । यह ब्रह्मा पर उनके प्रवचन का एक पाठ है । ब्रह्माविज्ञान ब्रह्मा से संबंधित सभी विषयों के बारे में है । यहां ओझा जी ने सरल शब्दों में प्राण-शक्ति का अर्थ समझाया है । Read/download

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