राष्ट्रीय संगोष्ठी–इन्द्रविजय : भारतवर्ष आख्यान (शृंखला-१०)


प्रतिवेदन

श्रीशंकर शिक्षायत वैदिक शोध संस्थान के द्वारा २६ अक्टूम्बर, सोमवार को सायंकाल ५- ७ बजे तक
अन्तर्जालीय माध्यम से एक राष्ट्रीय संगोष्ठी समायोजित की गयी। पण्डित मधुसूदन ओझा जी का इन्द्रविजय
नामक ग्रन्थ के चतुर्थ अध्याय के विविध विषयों को आधार बना कर यह राष्ट्रीय संगोष्ठी हुई ।
प्रो. रामानुज उपाध्याय, आचार्य, वेदविभाग, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,
नई दिल्ली ने कहा कि इस दस्युनिग्रह नामक चौथे प्रक्रम में इन्द्र के महान् कार्यों का निरूपण किया गया है। सब
से पहले पुरूरवा के पुत्र आयु था। उसके शत्रु का नाम वेश था। उस वेश को इन्द्र ने संयमित किया । उसके बाद
सव्यनामक आर्य का शत्रु षड्गृभि था। इन्द्र ने षड्गृभि का भी दमन किया। इस प्रक्रम में सभी दस्यूओं का आर्यों
के बीच में शत्रुभाव था। उस शत्रुभाव को इन्द्र ने दूर किया।
पौरूरवसस्यायोः शत्रुं वेशं तु नम्रतानमयत् ।
षड्गृभिमरन्धयत् तं यः सव्यायार्द्दयत्पूर्वम् ॥ ॥ इन्द्रविजय पृ. ४६९, का. १

प्रो. चन्द्रशेखर पाण्डेय, आचार्य, आयुर्वेद संकाय, चिकित्सा विज्ञान संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय,
वाराणसी ने कहा कि यह इन्द्रविजय ग्रन्थ भरतवर्ष का इतिहास और भूगोल है। उन्होंने पीपीटी के माध्यम से
अपना व्याख्यान प्रदान किया। इन्द्रविजय ग्रन्थ के चौथे अध्याय में आयुराज का परिचय प्राप्त होता है। आयु
गन्धर्वराज का पौत्र था तथा पुरूरवा का बेटा था। पुरूरवा बुध का बेटा था। वह आयु प्रतिष्ठान नगर का गन्धर्व
का राजा था।

गन्धर्वराजपौत्रो बुधपुत्रो यः पुरूरवा राजा ।
तत्पुत्र आयुरासीत् गन्धर्वेशः प्रतिष्ठाने ॥ वही, पृ. ४४२, का. १

प्रतिष्ठानपुर की भौगोलिकी सीमा इस प्रकार की थी। इस का वर्णन यहाँ अत्यन्त ही विस्तार से किया गया है।
गौरी नामक नदी के समीप में मूजवान् नामक पर्वत था। उस पर्वत के बगल में गान्धार नामक प्रदेश था।
गान्धारदेश में ही आयुराज का प्रतिष्ठान नगर था।

गौरीनदीसमीपे मूजवतः पर्वतादर्वाग्देशे।
गान्धारे प्रागासीदिदं प्रतिष्ठानमायुपुरम् ॥ वही, पृ. ४४२, का.२

डॉ. आभा द्विवेदी, सहायक आचार्या, संस्कृत विभाग, सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, सिद्धार्थ नगर, कपिलवस्तु ने कहा
कि दस्युनिग्रह नामक इस प्रक्रम में इन्द्र के लिए ऋग्वेद से सूक्ति उद्धृत किया गया है। इस सूक्ति के क्रम में

नीपातिथि नामक ऋषि ने इन्द्र की स्तुति की है। इन्द्र का निवास स्थान द्युलोक है। इन्द्र द्युलोक से आकर
दस्युओंका संहार किया फिर अपने निवास स्थान द्युलोक को चला गया।
एन्द्र याहि हरिभिरुप कण्वस्य सुष्टुतिम्।
दिवो अमुष्य शासतो दिवं यय दिवावसो ॥ वही, पृ. ४१७

डॉ. स्वर्ग कुमार मिश्र, सहायक अचार्य, साहित्य विभाग, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, एकलव्य परिसर,
त्रिपुरा ने कहा कि दस्युनिग्रह नामक इस प्रक्रम में कहा गया है कि कुत्स नामक आर्य का मित्र इन्द्र था।सिन्धुनदी
के पश्चिम तट पर कुत्स की राजधानी थी। अनेक दस्यूओं ने वहाँ आकर खेती को नष्ट करने लगा तथा नदी के
जलस्रोत को रोक दिया। तब राजा कुत्स ने देवराज इन्द्र की प्रार्थना की। इन्द्र ने अपने मित्र कुत्स को अपने
पराक्रम से रक्षा की । दस्युनिग्रह नामक प्रक्रम में कहा गया है कि इन्द्र जिस जिस स्थान पर गया था उस उस
स्थान का विस्तृत वर्णन इन्द्रविजय के इस प्रक्रम में किया गया है।।

कौत्से राष्ट्रे दस्युभिः सिन्धुपश्चात्प्रान्ते नानोपद्रवा अक्रियन्त ।
क्षेत्राणां चाप्स्रोतसां चावरोधास्तार्णान्नादिस्तूपदुर्निग्रहाश्च ॥ वही, पृ. ४२२, का. १
डॉ. श्वेता तिवारी, वरिष्ठ अध्येता, वैदिक शोध संस्थान, जयपुर ने कहा कि इन्द्रविजय नामक ग्रन्थ में दस्युनिग्रह
नामक अध्याय में दस्यूओं की अभिनव व्याख्या की गयी है। आर्य को प्रताडित करने के लिए अनार्य दस्यु ने बड़ा
उपद्रव किया। षड्गृभि नामक दस्यु और शुष्ण नामक दस्यु ने आर्य सव्य को प्रताडित किया, वेश नामक दस्यु
ने पुरूरवा के पुत्र आयुराज को प्रताडित किया, पिप्रु नामक दस्यु ने वैदथिन नामक आर्य को और ऋजिश्वान्
नामक आर्य को कष्ट पहुँचाया, महाबली मृगय नामक दस्यु ने शूशुव नामक आर्य को दुःख पहुँचाया।

सव्यं षड्गृभिशुष्णौ वेशस्त्वायुं पुरूरवःपुत्रम्।
वैदथिनमृजिश्वानं पिप्रुर्मृगयश्च शूशुवान् व्यरुजन् ॥ वही, पृ. ४०२, का. ४

इन्द्रविजय नामक ग्रन्थ के इस अध्याय में अनेक दस्यूओं के नामों का संकल किया गया है। उसी प्रकार अर्यों के
भी नामों का संकलन किया गया है। इसके लिए ग्रन्थकार पण्डित मधुसूदन ओझा जी ने वैदिकसूक्ति को उद्धृत
किया है।
प्रो. सन्तोष कुमार शुक्ल, आचार्य, संस्कृत एवं प्राच्य विद्या अध्ययन संस्थान, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय,
नई दिल्ली ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि गन्धर्व नामक देश में आर्यलोग निवास करते थे।। उस
आर्य को कष्ट पहुँचाने के लिए ‘अपगण’ लोग गन्धर्वदेश में आकर अनेक प्रकार के मानव विरुद्ध कार्य को करने
लगे। ‘अपगण’ शब्द से ही ‘अफगान’ यह नाम बना है।

एतेऽपगण-प्रमुखा आर्यान् गन्धर्व-देश-वास्तव्यान् ।
शश्वत् प्रपीडयन्तो व्याकुलयाञ्चक्रुरत्युग्राः ॥ वही, का. २

प्रो. रामराज उपाध्याय, आचार्य, पौरोहित्य विभाग, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई
दिल्ली ने सस्वर वैदिकमङ्गलाचरण का गायन किया। कार्यक्रम का सञ्चालन श्रीशंकर शिक्षायतन वैदिक शोध
संस्थान के शोध अधिकारी डॉ. लक्ष्मी कान्त विमल ने किया । इस कार्यक्रम में अनेक प्रान्तों के विश्वविद्याल और
महाविद्याल के आचार्य, शोधछात्र, संस्कृत विद्या मे रुचि रखने वाले विद्वानों ने उत्साह पूर्वक भाग ग्रहण कर
संगोष्ठी को सफल बनाया।

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