Katopanishadvijnana-bhashya

Katopanishad has an important place among Upanishads.This upanishad is famous as the dialogue between Nachiketa and Yama, the deity of death. Offered by his father in a yajna, Nachiketa reaches paraloka in a a bodyless form. After waiting for three days, he meets with Yama. Yama asks Nachiketa to see three blessings for the three days he had to wait.Along with asking the three blessings, Nachiketa asks fundamental questions on life and death. Yama answers them. The Upanishad contains explanations of many philosophical questions. Pandit Motilal Shastri says that the primary focus, however, is on bhoktatma. This book by Pandit Motilal Shastri is considered to be one of his finest commentaries. कटोपनिषाद्विज्ञान-भाष्य उपनिषदों में कटोपनिषद का महत्वपूर्ण स्थान है । यह उपनिषद मृत्यु के देवता नचिकेता और यम के बीच संवाद के रूप में प्रसिद्ध है । एक यज्ञ में अपने पिता द्वारा प्रस्तुत, नचिकेता एक शरीर रहित रूप में परलोक तक पहुँचता है । तीन दिनों के इंतजार के बाद, वह यम से मिलता है । यम ने नचिकेता से तीन दिनों तक तीन आशीर्वाद देखने के लिए कहा। तीन आशीर्वाद पूछने के साथ, नचिकेता जीवन और मृत्यु पर मौलिक प्रश्न पूछता है । यम उन्हें जवाब देता है । उपनिषद में कई दार्शनिक प्रश्नों की व्याख्या है । पंडित मोतीलाल शास्त्री कहते हैं कि प्राथमिक ध्यान भोक्तात्मा पर है । पंडित मोतीलाल शास्त्री की यह पुस्तक उनकी बेहतरीन टिप्पणियों में से एक मानी जाती है । Read/download

Read More

Shatpatha Brahmana

Shatpatha Brahmana has 100 chapters. This volume contains a comprehensive explanation of Yajurveda. Yajurveda, in conventional terms, is one of the four Vedas. In terms of tatva or essence, it is Yajurveda. There are two words in it–yath and ju. These refer to prana (life-force), vayu (air), gathi (movement) and vak (speech). Shastriji’s elucidation of Shatpatha Brahmana in Hindi offers insight into various aspects of Yajurveda.    शतपथ ब्राह्मण शतपथ ब्राह्मण में 100 अध्याय हैं । इस खंड में यजुर्वेद की व्यापक व्याख्या है । यजुर वेद, पारंपरिक शब्दों में, चार वेदों में से एक है । तत्त्व या सार के संदर्भ में, यह यजुर्वेद है । इसमें दो शब्द हैं-यथ और जू। ये प्राण , वायु , गति और वाक का उल्लेख करते हैं । शास्त्रीजी की हिंदी में शतपथ ब्राह्मण की व्याख्या यजुर्वेद के विभिन्न पहलुओं में अंतर्दृष्टि प्रदान करती है । Read/download Volume 1 Part 1 Read/download Volume 1 Part 2 Read/download Volume 1 Part 3 Read/download Volume 3 Part 2 Read/download Volume 4 Part 1 Read/download Volume 4 Part 2

Read More

Bharatiya Hindu Manav aur Uski Bhavukta (including the short version)

This is a fairly voluminous work on Indian philosophy.  Pandit Motilal Shastri has drawn extensively from the Vedas and puranas to present new dimensions of Indian philosophy.  There are two versions of the book–the longer version is given below, followed by the short version. भारतीय हिन्दू-मानव और उसकी भावुकता—पूर्ण संस्करण भूमिका-(पृष्ठ १-१८) के लेखक प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. वासुदेवशरण अग्रवाल है। पुरुष के विषय में लिखते हुए शतपथब्राह्मण को उद्धृत किया गया है। ‘पुरुषो वै प्रजापतेर्नेदिष्ठम्, ४.३.४.३’ पुरुष प्रजापति के निकटतम है। पुरुष प्रजापति की सच्ची प्रतिमा है। प्रजापति मूल है, तो पुरुष उसकी ठीक प्रतिकृति है। (पृ.१) किमपि प्रास्ताविकम्-(पृष्ठ १-२०) के अन्तर्गत पं. शास्त्री जी ने ‘आत्मा उ एकः सन्नेतत् त्रयम्,  त्रयं सदेकमयमात्मा, (बृहदारण्यक १.६.३)’ एक ही तत्त्व सृष्टि काल में दैवतभाव में, आत्मभाव में और भूतभावों में व्यक्त रहता है। प्रतिसर्ग की दशा में तीनों तत्त्व एक ही रूप में परिणत हो जता है। (पृ.८) असदाख्यान-मीमांसा– (पृ.१-१३२) यह प्रथम स्तम्भ है। भारतीय उसासनाकाण्ड में उपासक की लक्ष्यसिद्धि के लिए प्रतिमा को माध्यम माना गया है। ‘माइथा’ शब्द मिथ्याभाव का संग्राहक है। ‘लाजी’ शब्द ज्ञानशब्द का संग्राहक है। माइथालाजी का अर्थ मिथ्याज्ञान है। यही तात्पर्य असदाख्यान का है। (पृ.६) युधिष्ठिर प्रमुख पाण्डव सर्वात्मना दुःखार्त एवं दुर्योधन कौरव सर्वात्मना सुखी और समृद्ध क्यों और कैसे? यह मूल प्रश्न है। जिसका हिन्दू मानव की भावुकता के माध्यम से इस निबन्ध में विश्लेषण किया जायेगा  । (पृ. २३) विश्वस्वरूप-मीमांसा- (पृ. १३६-४४७) यह द्वितीय स्तम्भ है। विश्व शब्द पर विचार करते हुए कहा गया है कि प्रवेशनार्थक ‘विश’ धातु से ‘क्वुन्’ प्रत्यय द्वारा विश्व शब्द बना है। ‘विशति अत्र आत्मा, तद् विश्वम्’। जहाँ आत्मा प्रविष्ट रहता है, वह विश्व है। (पृ.१३७) तात्त्विक दृष्टि से विश्व शब्द का अर्थ ‘सर्व’ है।‘विश्वानि देव, यजुर्वेद ३.२०’। शतपथब्राह्मण में भी जो विश्व है वही सब कुछ है। ‘यद्वै विश्वं, सर्वम् तत्, शतपथब्राह्मण ३.१.२.११’। एकत्व आत्मनिबन्धन है और अनेकत्व विश्वनिबन्धन है। अमृतलक्षण आत्मा अखण्ड है, एकाकी है। मृत्युलक्षण क्षरात्मक विश्व खण्ड खण्डात्मक बनता हुआ नानाभावापन्न है। इसके लिए बृहदारण्यक उपनिषद् प्रमाण है।                   मृत्योः स मृत्युमाप्नोति, य इह नानेव पश्यति।  ४.४.१९ (पृ. १३८) वाक् शब्द पर विश्लेषण करते हुए कहा गया है कि मन, प्राण और बल ये तीन तत्त्व है। मन के लिए ‘अ’ का, प्राण के लिए ‘उ’ का और बल के लिए ‘अच्’ का ग्रहण किया जाता है। ‘उ’ का संप्रसारण होकर अर्थात् ‘उ’ बदल कर ‘व्’ हो जाता है। ‘व्+ अ+ अच्’ इस स्थिति में ‘अ+ अच्’ मिलकर ‘आच्’ हो गया। पुनः ‘व्’ से मिल कर ‘वाच्’ होता हुआ वाक् बन जाता है। (पृ. २५३) Bharatiya Hindu Manav aur Uski Bhavukta—Short version This is the short version of the above volume. भारतीय हिन्दू-मानव और उसकी भावुकता–-लघु संस्करण भारतीय हिन्दू मानव और उसकी भावुकता नाम से जो बड़ा ग्रन्थ है। उसी ग्रन्थ को संक्षेप में लघुरूप में पाठक के रुचि को बढ़ाने  के लिए संकलित किया गया है।भावुकता के लिए महाभारत की कथा को आधार बनाया गया है। पाण्डव में सब गुण होते हुए भी वे दुःखी थे। कौरव में सब दोष होते हुए भी वे सुखी थे। इसका कारण भावुकता है। पाण्डव में भावुकता थी और कौरव में निष्ठा थी। (पृ.१-२) द्यूतकर्म से प्रभावित धर्मभीरु युधिष्ठिर ने प्रत्यक्ष से प्रभावित होकर सती द्रौपदी को दाव पर लगा दिया। द्यूत जैसे निन्दनीय कर्म के साथ प्रतिज्ञापालन जैसे धर्म तत्त्व का ग्रन्थिबन्धन करने की भावुकता करते हुए युधिष्ठिर ने आपना राज्य खो दिया। (पृ.४) चार प्रकार के मानव को आधार बना कर विषय को स्पष्ट किया गया है। ये हैं-आत्मा, मन, बुद्धि और शरीर।बुद्धि, मन और शरीर से संबद्ध आत्मा को प्रधान मानने वाला मनुष्य हमेशा खुश रहता है। वह सभी समयों में निष्ठावान् रहता है।आत्मा, मन और शरीर से संबद्ध  बुद्धि को प्रधान मानने वाला मनुष्य हमेशा समृद्धि में रहता है। वह भविष्य को सोच कर विश्वासी रहता है। आत्मा, बुद्धि और शरीर से संबद्ध  मन को प्रधान मानने वाला मनुष्य हमेशा जीवन का निर्वाह मात्र करता है। वह वर्तमानकाल में रहता हुआ श्रद्धालु बना रहता है। आत्मा, बुद्धि और मन से संबद्ध  मन को प्रधान मानने वाला मनुष्य हमेशा भावुक रहता है। वह भूतकाल को सोचता हुआ लक्ष्यभ्रष्ट बना रहता है। (पृ. १३) उपनिषत्काल में भारतराष्ट्र और उसका मानव समाज अभ्युदय और निःश्रेयस के परम उत्कर्ष पर पहुँचा हुआ था।  यह काल भारतराष्ट्र का स्वर्णयुग था। छान्दोग्योपनिषद् को उद्धृत करते हुए लिखा गया है कि मेरे राज्य में एक भी चोर नहीं है, एक भी कृपण नहीं है, एक भी शराबी नहीं है, एक भी अनाग्निहिताग्नि नहीं है (सभी यज्ञ करने वाले हैं), एक भी मूर्ख नहीं है, एक भी व्यभिचारी नहीं है, फिर व्यभिचारिणी कहाँ से मिले। स ह (कैकेयः) प्रातः संजिहान उवाच न मे स्तेनो जनपदे, न कदर्यः, न मद्यपः, न अनाहिताग्निः, न अविद्वान्, न स्वैरी, न स्वैरिणी कुतः।  ५.११.५ (पृ.६०) उपनिषद् के इस वाक्य से हिन्दूशास्त्र की सर्वोत्कृष्ट व्यवहारिकता का एवं चरम सफलता का परिचय प्राप्त होता है। Read/download the longer version Read/download the short version

Read More

Vijnanachitravali–I & II

Vijnana-chitravali ( illustrated science of Veda)  is a collection of illustrations and charts drawn by Pandit Madhusudan Ojha and Pandit Motilal Shastri in their many works. This volume is edited by Shastriji. These illustrations and drawings have been drawn from Shatapatha Brahmana, Gitavijnana-bhashya, Ishopanishath, Sradhvijnana and other works.   विज्ञान चित्रावली- प्रथम और द्वितीय विज्ञान चित्रावली (वेद का सचित्र विज्ञान) पंडित मधुसूदन ओझा और पंडित मोतीलाल शास्त्री द्वारा उनके कई कार्यों में तैयार किए गए चित्रों और चार्टों का एक संग्रह है । यह खंड शास्त्रीजी द्वारा संपादित किया गया है । ये दृष्टांत और चित्र शतपथ ब्राह्मण, गीतविजना-भाष्य, ईशोपनिषथ, श्राधविजना और अन्य कार्यों से तैयार किए गए हैं । Read/download Vijnanachitravali–I Read/download Vijnanachitravali- II

Read More

Shvetakranti ka mahan sandesh

The book is based on three subjects- Human way of life– It is said in Manusmriti that animals are superior among living beings and the intelligent is superior among living beings. Bhootanaam Praanina: Shreshthaah, Praaninaam Buddhijivinah. Manu 1.96, (p.10) Man has been divided into four parts- body, mind, intellect and soul. The body is related to the earth, the mind is related to the moon and the intellect is related to the sun. The soul of a human being is indestructible. (p.11) Are we human?- Just as there is a relationship between the soul and the body, similarly there is a relationship between religion and ethics. Ethics is the body and religion is the soul. That policy is the policy which protects the form of religion. Religion is that religion which keeps the policy established on its basis engaged in the progress of the people. Political views have also been discussed in this book. Communism, Praja Samaj, Congressism, Ram Rajya based on the principle of economic equation, Hindu Sabha based on communal sentiments, provocative Jan Sanghism etc. are the ideologies prevalent at present. Presenting the outline of the colour-related revolution on the basis of the four elements of body, mind, intellect and soul, it has been said that the body is the black revolution (black), the mind is the yellow revolution (yellow), the intellect is the red revolution (red) and the soul is the white revolution (white). Great message– Brahma is said to be indestructible and that is the soul. The human who enters the assembly of Prajapati soul becomes famous by the power of indestructible self-respect. The white, pure, Sattva Guna, knowledge-oriented fame is related to Brahmin Varna. Fame of Kshatriyas is manliness (strength). Fame of Vaishyas is economic power. Fame of Brahmin is related to Sun and intellect element. Fame of Kshatriya is related to moon and mind element and fame of Vaishya is related to earth and body element. These three are the world. श्वेतक्रान्ति का महान् सन्देश      श्वेतक्रान्ति का महान् सन्देश नामक ग्रन्थ में तीन विषय को आधार बनाया गया है- मानवजीवनपद्धति- मनुस्मृति में कहा गया है कि जीवों में प्राणी श्रेष्ठ है और प्राणियों में बुद्धिमान् श्रेष्ठ है।                   भूतानां प्राणिनाः श्रेष्ठाः,  प्राणिनां बुद्धिजीविनः। मनु १.९६, (पृ.१०) मनुष्य का चार भागों में विभाग किया गया है- शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा। शरीर का पृथ्वीमण्डल से संबन्ध है, मन का चन्द्रमण्डल से संबन्ध है और बुद्धि का सूर्यमण्डल से संबन्ध है। मानव का आत्मा अव्ययप्रधान है। (पृ. ११) क्या हम मानव हैं- जिस प्रकार आत्मा और शरीर का संबन्ध है उसी प्रकार धर्म और नीति का संबन्ध है। नीति शरीर है और धर्म आत्मा है। वही नीति नीति है जो धर्मस्वरूप का संरक्षण करती है। धर्म वही धर्म है जो अपने आधार पर प्रतिष्ठित नीति को लोकाभ्युदय में प्रवृत्त रखता है। (पृ. १४६)  इस ग्रन्थ में राजनीतिक विचार भी किया गया है। अर्थ समीकरण के सिद्धान्त पर चलने वाला साम्यवाद (कम्यूनिज्म), प्रजासमाजवाद, काँग्रेसवाद, धर्मभावात्मक रामराज्यवाद, साम्प्रदायिकभावनुगत हिन्दूसभावाद, उत्तेजनात्मक जनसंघवाद आदि आदि वाद अभी चल रहे हैं। (पृ.४९) शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा इन चार तत्त्वों के आधार पर रंग संबन्धी क्रान्ति का रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए कहा गया है कि शरीर कृष्णक्रान्ति (काला) है, मन पीतक्रान्ति(पीला) है, बुद्धि रक्तक्रान्ति (लाल) है और आत्मा श्वेतक्रान्ति (सफेद) है। (पृ. १६४) अनुशीलन, अनुकरण, आचरण और अनुकरण ये चार हैं। अनुशीलन से ब्राह्मण का, अनुसरण से क्षत्रिय का, आचरण से वैश्य का और अनुकरण से शूद्र का संबन्ध है। पाँचवा तत्त्व अव्यय है। जिसके व्यक्तिधर्म, संविद्धर्म, पुरुषधर्म सनातन आदि हैं। (पृ. ११३) ब्रह्म को अव्यय कहा गया है और वही आत्मा है। प्रजापति आत्मा के सभारूप विग्रह में प्रविष्ट मानव अव्ययात्मनिष्ठ के बल पर सर्वात्मना उस यश से यशस्वी बन जाता है। जो श्वेत, शुभ्र, सत्त्वगुण, ज्ञाननिष्ठ यश का  संबन्ध ब्राह्मण वर्ण से है। क्षत्रियों का यश पौरुष (बल) है। वैश्यों का यश अर्थशक्ति है।  ब्राह्मण का यश सूर्य से एवं बुद्धि तत्त्व है। क्षत्रिय का यश चन्द्रमा से  एवं मन तत्त्व है और वैश्य का यश पृथ्वी से  एवं शरीर तत्त्व है। ये तीनों विश्व हैं। इसीलिए ये तीनों विश्वयश हैं। विश्वात्मयश अव्यय है। वही आत्मयश है। (पृ.१६८)    पिछले कई शताब्दियों से भारत की सांस्कृतिक और नैतिक प्रतिष्ठा में लगातार गिरावट आई है। यह हम सभी के लिए गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं के कारण, देश कई विचारों और विचारधाराओं का युद्धक्षेत्र बन गया है। Read/download

Read More

Bharatiya Drishti Se Vijnana Shabd Ka Samanvaya

These is the compendium of Pandit Motilal Shastri’s talks delivered on the All India Radio, Jaipur, in 1953. In these talks, Shastriji has explained the scientific aspect of the Veda. He has presented the true scope and meaning of the Veda. Reading of these talks offers a new insight into the very concept of “vijnana` (science).  भारतीय दृष्टि से विज्ञान शब्द का समन्वययह ग्रन्थ 1953 में ऑल इंडिया रेडियो, जयपुर ,पर दी गई पंडित मोतीलाल शास्त्री वार्ता का संग्रह है । इन वार्ताओं में शास्त्री जी ने वेद के वैज्ञानिक पहलू की व्याख्या की है । उन्होंने वेद का वास्तविक दायरा और अर्थ प्रस्तुत किया है । इन वार्ताओं को पढ़ने से `विज्ञान`की अवधारणा में एक नई अंतर्दृष्टि मिलती है ।विज्ञान शब्द में ‘वि’ उपसर्ग और ज्ञान संज्ञा शब्द है। ‘वि’ के तीन अर्थ हैं- विविध, विशेष और विरुद्ध । ‘विशेषं ज्ञानं विज्ञानम्’, ‘विविधं ज्ञानं विज्ञानम्’ और ‘विरुद्धं ज्ञानं विज्ञानम्’। इन तीनों में ‘विरुद्धं ज्ञानं विज्ञानम्’ यह पक्ष ठीक नहीं है। बाकी दो अर्थों पर विचार आवश्यक है। विचार के लिए विविध और विशेष ही समुचित है। ‘विशेषभावानुगतं विशेषभावाभिन्नं विविधं ज्ञानम् एव विज्ञानम्’।(पृ. ८-९)। एकं ज्ञानम्- ज्ञानम्, विविधं ज्ञानं विज्ञानम्।ब्रह्मैवेदं सर्वम् (बृहदारण्यक उपनिषद्, २.४.६), (आत्मैवेदं सर्वम्, छान्दोग्योपनिषद् ७.२५.२ ) इस श्रुतिवाक्य में वह ब्रह्म ही सब कुछ है, यह श्रुति ब्रह्म को उद्देश्य मान कर ‘इदं सर्वम्’ इस विश्व का विधान करती है, ब्रह्म से विश्व की ओर आना विज्ञान का पक्ष है। सर्वं खल्विदं ब्रह्म (छान्दोग्योपनिषद् ३.१४.१) यह सब कुछ ब्रह्म ही है। यह श्रुति विश्व को उद्देश्य मान कर ब्रह्म का विधान करती है। विश्व से ब्रह्म की ओर आना, यह ज्ञानपक्ष है। (पृ. २३) ग्रन्थकार पं शास्त्री जी ने इस प्रकार के अनेक श्रुति को उद्दृत किया है। विज्ञान के लिए प्रजापति के सन्दर्भ में ब्राह्मण वाक्य उद्धृत करते हैं। प्रजापतिस्त्वेवेदं सर्वं यदिदं किञ्च (शतपथब्राह्मण २.१.२.११) ज्ञान के पक्ष में ब्राह्मण वाक्य है।(सर्वमु ह्येवैदं प्रजापतिः) (पृ. २३)सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म, यह श्रुति ज्ञान का द्योतक है और ‘नित्यं ज्ञानम् आनन्दं ब्रह्म’ यह श्रुति विज्ञान का द्योतक है।( पृ. २४) ज्ञान के लिए ब्रह्म और विज्ञान के लिए यज्ञ शब्द का प्रयोग होता है। इस प्रकार ब्रह्मविज्ञान और यज्ञविज्ञान ये दो धाराएँ हैं। (पृ.२९)अमृत मृत्यु की व्याख्या करते हैं। जो अमृत तत्त्व है वही जीव के शरीर में विद्यमान है। जो मनुष्य इस तत्त्व में नानात्व को देखता है वह मृत्यु से मृत्यु को ही प्राप्त होता है। इस श्रुति में जहाँ जहाँ नानाभावों का, अनेक भावों का, पृथक्भावों का स्वरूप विश्लेषण किया है। वहाँ वहाँ उनके साथ-साथ ही मृत्यु शब्द का संबन्ध है। नानात्व, भेदत्व, पृथक्त्व मृत्यु का धर्म है। अनेकत्व अभेदत्व, अपृथक्त्व अमृत का धर्म है। अमृत और मृत्यु से ज्ञान और विज्ञान को विश्लेषण किया गया है। (पृ. १०) यदेवेह तदमुत्र यदमुत्र तदन्विह । मृत्योः स मृत्युमाप्नोति य इह नानेव पश्यति ॥ कठोपनिषद् २.१.१० (पृ.१०)एकं वा इदं वि बभूव सर्व (ऋग्वेद ८.६८.२) इस में एक से अनेक की ओर जान विज्ञानपक्ष है। (पृ.२२) अब ग्रन्थकार ज्ञान और विज्ञान को ब्रह्म और यज्ञ से परिभाषित करते हैं। ज्ञानात्मक विज्ञान के लिए ‘ब्रह्म’ शब्द और विज्ञानात्मक विज्ञान के लिए ‘यज्ञ’ शब्द है। (पृ.२५) ब्रह्म और यज्ञ परस्पर आश्रित रहते हैं। यज्ञ ब्रह्म पर प्रतिष्ठित है और ब्रह्म भी यज्ञ के द्वारा विभूतिभाव में परिणत होता है। तस्मात् सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्। गीता ३.१५ (पृ. ४५) Read/download

Read More

Veda Ka Svarup Vichar

This is the collection of talks on Veda which Pandit Motilal Shastri gave on the All India Radio in 1953. In these talks, Shastriji has explained how the scientific meaning of the Veda was lost over the years and the Veda became merely a collection of volumes. He has argued how fundamental elements like fire, air, and sun were the true essence of the Veda and not the volume of mantras.   वेद का स्वरूप विचार यह वेद पर वार्ता का संग्रह है जो पंडित मोतीलाल शास्त्री ने 1953 में ऑल इंडिया रेडियो पर दिया था । इन वार्ताओं में, शास्त्री जी ने बताया है कि कैसे वर्षों में वेद का वैज्ञानिक अर्थ खो गया और वेद केवल संस्करणों का संग्रह बन गया । उन्होंने तर्क दिया है कि अग्नि, वायु और सूर्य जैसे मूलभूत तत्व वेद का वास्तविक सार थे न कि मंत्रों का आयतन । Read/download

Read More

Veda Vijnana And Other Essays

Pandit Motilal Shastri translated many works on Veda vijnana of his guru, Pandit Madhusudan OJha.  He went beyond mere transliteration of the works and embellished it with his own understanding of the complex subject in Hindi.           वेद विज्ञान और अन्य निबंध पंडित मोतीलाल शास्त्री ने अपने गुरु पंडित मधुसूदन ओझा के वेद विज्ञान पर कई रचनाओं का अनुवाद किया । उन्होंने केवल रचनाओं के लिप्यंतरण से परे जाकर हिंदी में जटिल विषय की अपनी समझ से इसे अलंकृत किया । Read/download

Read More

Sanskritik Vyakhyanapanchakam

This is the collection of five lectures given by Pandit Motilal Shastri at Rashtrapati Bhavan, New Delhi, in 1956.  Shastriji was invited by the first President of independent India, Dr Rajendra Prasad, to present his profound views on the Vedas and other sacred texts. सांस्कृतिक व्याख्यानपञ्चकम्पं. मोतीलाल शास्त्री का राष्ट्रपतिभवन में भारत के प्रथम राष्ट्रपति माननीय डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के समक्ष १४ से१८ दिसम्बर १९५६ ई. को लगातार पाँच दिनों तक वैदिकविज्ञान पर व्याख्यान हुआ था। एक-एक दिन के विषय इस प्रकार हैं- संवत्सरमूला अग्नीषोमविद्या, पञ्चपर्वात्मिका विश्वविद्या, मानव का स्वरूप परिचय, अश्वत्थ विद्या का स्वरूप परिचय और वेद शास्त्र के साथ पुराण का समन्वय।संवत्सरमूला अग्नीषोमविद्या इस शीर्षक में अनेक विषयों को शास्त्री जी ने समाहित किया है। यहाँ ऋतु शब्द की व्याख्या प्रस्तुत की जा रही है। ऋत अग्नि में ऋत सोम की आहुति होती है। दोनों के परस्पर मिलन से अपूर्वभाव उत्पन्न होता है। उसे ही ऋतु कहा गया है। वसन्त ऋतु- मान लीजिए अभी अत्यन्त शीत का प्रकोप है। संवत्सर अग्नि से विहीन बन रहा है। सोमात्मक शीततत्त्व के चरम विकास के बाद अग्नि का जन्म होता है। वह अग्निकण सोम पर बरसने लगता है। यही वसन्त ऋतु है। जिसका निर्वचन है- ‘यस्मिन् काले अग्निकणाः पदार्थेषु वसन्तो निवसन्तो भवन्ति स कालः वसन्तः’।ग्रीष्म ऋतु- जिस ऋतु के बाद अग्नि ने अधिक बल से पदार्थों को ग्रहण किया वही काल ग्रीष्म है। जिसका निर्वचन है- ‘यस्मिन् काले अग्निकणाः पदार्थान् गृह्णन्ति स कालः ग्रीष्मः’। ग्रीष्म का ही दूसरा नाम ‘निदाघ’ है। इसमें अग्नि अधिक बढ़ा रहता है, निःसीम बना, पदार्थों को जलाने लगा यही निदाघ कहलाता है। इसका निर्वचहन है- ‘नितरां दहत्यग्निः पदार्थान्’।वर्षा ऋतु- निदाघ की चरम अवस्था ने अग्निविकास को परावर्तित कर दिया। संकोचावस्था आरम्भ हो गया। यही संकोच अवस्था वर्षा ऋतु है। जिसका निर्वचन है- ‘अतिशयेन उरु अग्निः यस्मिन् काले’। पाणिनि व्याकरण के अनुसार ‘उरु’ के स्थान पर वर्ष आदेश होता है।यहाँ तीनों ऋतुओं में अग्नि का विकास है। आगे की ऋतुओं में अग्नि का ह्रास का वर्णन है। अग्नि का ह्रास का अर्थ है सोम का विकास।शरत् ऋतु- जिस अनुपात से वसन्त से अग्निकण बढ़े थे, उसी अनुपात से अब अग्निकण कम होने लगे। जिस काल में अग्नि न्यून होता है वह शरत् ऋतु है। जिसका निर्वचन है- ‘यस्मिन् काले अग्निकणा शीर्णा भवन्ति स कालः शरत्’।हेमन्त ऋतु- जिस काल अग्नि कण पहले से भी कम हो गया वह हेमन्त ऋतु है। जिसका निर्वचन है- ‘यस्मिन् काले अग्निकणा हीनतां गता भवन्ति स कालः हेमन्तः’।शिशिर ऋतु- अग्निकण जहाँ पूर्ण रूप से कम हो जाता है वह काल शिशिर ऋतु है। जिसका निर्वचन है-‘पुनः पुनरतिशयेन शीर्णाः अग्निकणाः स कालः शिशिरः’। (सांस्कृतिक व्याख्यानपञ्चकम् पृ. ३५-३६)इस प्रकार ऋतुओं से ही संवत्सरयज्ञ का स्वरूप निर्धारित होता है। यही ‘अग्निषोमात्मकं जगत्’ का संक्षिप्त स्वरूप है। Read/download English translation can be found here https://shankarshikshayatan.org/vedic-concept-of-man-universe/

Read More