This is an important work on the principles of Vedanta. Influenced to a great extent by Shankaracharya’s commentaries on Vedanta, Pandit Madhsudan Ojha has written his own interpretation of the subject. In his work, Ojhaji has clarified several points by Shankaracharya which, otherwise, would have remained difficult to understand. It is in two parts.
शरीरकविज्नाना भाग एक और दो
वेदान्तसूत्रों पर आचार्य शंकर के पश्चात् लिखे गये भाष्यों में शारीरकविज्ञान का महत्त्वपूर्ण स्थान है । यद्यपि इस भाष्यग्रन्थ पर आचार्य शंकर के भाष्य का प्रभाव तो स्वाभाविक ही है परन्तु इस भाष्य के अनेक स्थलों के विवेचन से यह ज्ञात होता है कि इस ग्रन्थ के बिना वेदान्त सूत्रों के अनेक स्थल अस्पष्ट रह जाते या उनके विपरीत अर्थ ग्रहण कर लिये जाते । इन्हीं दृष्टिभेद बिन्दुओं को लेकर इस भाष्यग्रन्थ की रचना ओझाजी ने की है । यह भाष्य ग्रन्थ दो भागों में विभक्त है ।